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मोहनीय कर्म का उपशम
मोहनीय कर्म के उपशम से पूर्वजन्म के स्मरण का उल्लेख है । '
अध्यवसान शुद्धि
उत्तराध्ययनसूत्र के 19वें अध्ययन के अनुसार मृगापुत्र ने साधु को देखकर जातिस्मृति प्राप्त की। उसने जब एक संयत श्रमण को जाते हुए देखा तब मन ही मन सोचा कि 'ऐसा रूप मैंने पहले कहीं देखा । जिससे वह अपने देवलोक के पूर्वजन्म का तथा उससे भी पूर्वजन्म में आचरित पंचमहाव्रत रुप श्रमण धर्म का स्मरण करता है। साथ ही वह नरक और तिर्यञ्चगति में प्राप्त हुई भयंकर वेदनाओं को सहन करने का भी वर्णन करता है। 2
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उत्तराध्ययनसूत्र के 'चित्र-संभूति' अध्ययन से भी पूनर्जन्म का अस्तित्व सिद्ध होता है, चित्र और संभूत के साथ-साथ जन्म लेने की घटनाएँ पूर्वजन्म और पुनर्जन्म की श्रृंखला का ज्वलन्त प्रमाण हैं। उनके 6 जन्म इस प्रकार हैं -
1. गोपाल पुत्रद्वय 4. हंस युगल
इसके अतिरिक्त विपाक सूत्र व निरयावलिका सूत्र में भी प्रत्यक्षज्ञानी आप्त पुरुषों ने यही प्रतिपादित किया है कि "जो आत्मवादी होता है, वह लोकवादी अवश्य होता है"
उत्तराध्ययनसूत्र में 'नमिपवज्जा' में नमि राजा को
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2. दासी पुत्र द्वय 5. चित्र-संभूत
अर्थात् वह इहलोक-परलोक या स्वर्ग, नरक, मनुष्यलोक व तिर्यञ्चलोक को मानता है, दूसरे शब्दों में पूर्वजन्म - पुनर्जन्म को असंदिग्ध रूप से मानता है। जो लोकवाद को मानता है, उसे इहलोक में आने, जन्म लेने और मृत्यु के बाद विविध परलोकों में जाने के मुख्य कारण 'कर्मवाद' को मानना पड़ेगा।'
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सूत्रकृतांगसूत्र में बताया गया है कि "सभी प्राणी अपने-अपने पूर्वकृत कर्मों के कारण विभिन्न गतियों-योनियों में परिभ्रमण करते रहते हैं । 5
3. मृगयुगल
6. ब्रह्मदत्त चक्रवर्ति - मुनि
1 " चइउण देवलोगाओ, उववण्णो माणुसम्मि लोगाम्मि ।
उवसंतमोहणिज्जो, सरई पोराणिंय जाई ।। - उत्तराध्ययन सूत्र, 9/1
2 " देवलोग - चुओ संतो, माणुस्सं भवमागओ ।
सन्निनाणे समुप्पन्नो जाई सरइं पुराणयं ।। उत्तराध्ययन सूत्र, 19, प्रक्षिप्त, हस्तीमल जी मा., सम्यग्ज्ञान प्रचारक मण्डल, जयपुर, पृ. 317
3 उत्तराध्ययन सूत्र 13 /5-7
4 " से आयावाई लोयावाई, कम्मावाई, किरियावाई" - आचारांग सूत्र 1/1/1/5
5 सव्वे सयकम्म कप्पिया सूत्रकृतांग सूत्र 1/2/16/18
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