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यहाँ से च्यूत होकर परलोक में क्या होऊंगा? इस जिज्ञासा के समाधान में आचारांग सूत्र में तीन हेतुओं का निर्देश दिया है - 1. स्वस्मृति
परव्याकरण 3. दूसरों के पास से सुन कर'
स्वस्मृति
कुछ जीवों को बाल्यावस्था में ही पूर्वजन्म की सहज स्मृति प्राप्त होती है। ऐसी अनेक घटनाएँ मिलती हैं। आधुनिक परामनोवैज्ञानिकों ने पूर्वजन्म की सहज स्मृति से सम्बन्धित अनेक घटनाओं का संग्रह किया है। 2. परव्याकरण
- कई जीव किसी आप्त के साथ व्याकरण प्रश्नोत्तरपूर्वक मनन कर उस ज्ञान को प्राप्त करते हैं। परव्याकरण का आशय है - तीर्थंकर द्वारा व्याख्यात। गौतम स्वामी को भगवान महावीर की वाणी सुनकर पूर्व सम्बन्ध का ज्ञान हुआ। 3. दूसरों के पास से सुनने से
बिना पूछे किसी अतिशयज्ञानी के द्वारा स्वतः ही निरुपित तथ्य को सुनकर कोई पूर्वजन्म का संज्ञान प्राप्त कर लेता है।'
इसी सूत्र में आगे कहा गया है कि - अतीत (पूर्वजन्म) अथवा भविष्य (पुनर्जन्म) जीवों के अपने-अपने कृत कर्मों के अनुसार होता है, अतः पवित्र आचरण युक्त महर्षि इस सिद्धान्त को, अथवा पूर्वजीवन, पुनर्जीवन या वर्तमान जीवन के कर्म से अविच्छिन्न सम्बन्ध को जानकर कर्मों को धुनकर क्षय कर डाले।
कुछ मनुष्यों को पूर्वजन्म की स्मृति जन्मजात नहीं होती लेकिन किसी निमित्त के मिलने पर स्मृति जागृत होती है।
'आचारांगसूत्र, 1/1/1/2 2 "सह सम्मइयाए, परवागरणेणं, अण्णेसिं वा अंतिए सोच्चा", आचार्य महाप्रज्ञ, आचारांग भाष्य, जैन विश्वभारती ___ लाडनूं, पृ. 19 3 "अवरेण पुट्विं न सरंति ..... विहुपकप्पे एयाणुपस्सी।। - आचारांग सूत्र 1/3/3/40, मधुकर मुनि जी, ब्यावर
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