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पुष्प चूलिका सूत्र
इसमें भगवान पार्श्वनाथ के शासन में दीक्षित हो शिथिलाचारीणी श्रमणियों की कथाओं का वर्णन है । जब आत्मा दीक्षित हो जाती है तब उसका ध्यान शरीर शुद्धि की अपेक्षा आत्मशुद्धि की ओर लगना चाहिए, स्वकीय वस्त्र प्रक्षालन की अपेक्षा जीवन रूपी चादर के प्रक्षालन में नियोजित होना चाहिए, इसी प्रक्रिया के माध्यम से जब भी उसकी भवस्थिति पक जाती है तब वह आत्मा स्वयं परमात्मा बन जाता है। भूता आर्या के उदाहरण द्वारा उक्त तथ्य को स्पष्ट किया है, यदि कोई पूर्वोक्त तथ्य से अपने आपको पृथक करता है उसे अपने जीवन के अंत में आलोचना कर लेना चाहिए?
वहिदशा
यह उपांग सूत्र है। इसमें निषधकुमार आदि वृष्णिवंशीय द्वादश कुमारों का वर्णन प्रत्येक अध्ययन में किया गया है, एतदर्थ इसके इस सूत्र के दस अध्ययन हैं । वे बारह राजकुमार भगवान अरिष्ठनेमि के उपदेशों को आत्मसात कर दीक्षित हुए, कर्मों का क्षय करने का उपक्रम भी किया है, इसमें पौराणिक तत्त्वों की प्रधानता है। इस आगम में हरिवंश और वृष्णिवंश की उत्पत्ति के विषय में विशद वर्णन है । वृष्णिवंश पूर्व में हुआ, उसके पश्चात् हरि नामक पुरुष के प्रभाव से इस वंश का नामकरण हरिवंश पड़ा । तीर्थंकर अरिष्टनेमि का कतिपय दृष्टियों से महत्त्वपूर्ण वर्णन है । '
मूलसूत्र
जिन आगमों में मुख्यरूप से श्रमण के आचार सम्बन्धी मूल गुणों, महाव्रत, समिति - गुप्ति आदि का निरूपण है और जो श्रमणचर्या में मूलरूप से सहायक बनते हैं। तथा जिन आगमों का अध्ययन श्रमण के लिए सर्वप्रथम अपेक्षित है, उन्हें मूलसूत्र कहा गया है । 2 मूलसूत्र यह एक साभिप्राय संज्ञा है जिसका आशय इस रूप में है कि जिन आगमों में श्रमण के आचार सम्बन्धी मूलगुणों, चारित्र और महाव्रत के पोषक किंवा अनुजीवी समिति - गुप्ति, भावना प्रभृति का निरूपण है। आशय यह है कि जो श्रमणचर्या में मूलरूप से सहायक हैं, जिन आगमों का अध्ययन श्रमणों-श्रमणी के लिए अनिवार्य है, उन्हें मूलसूत्र कहा गया है।
1 जैन आगम मनन और मीमांसा, आचार्य देवेन्द्रमुनि, वही, पृ. 278
2 जैन आगमः वही, पृ. 22
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