________________
मुक्त हो जाती हैं। इन सब तथ्यों का मार्मिक रूपेण विवेचन है। इस तरह यह उपांग सूत्र ऐतिहासिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण है। कल्पावतंसिकासूत्र
इस सूत्र में राजा श्रेणिक के 10 पौत्रों की कथाएँ वर्णित हैं, जिन्होंने अपने भावों के द्वारा स्वर्ग प्राप्त किया था, अर्थात् कल्प में जा कर उत्पन्न हुए, इसी कारण इसका नाम कल्प + अवतंसिका अर्थात् कल्पावतंसिक रखा गया है।'
जीवन शोधन की प्रक्रिया का विश्लेषण, व्रताचरण आदि की उपयोगिता जीवन में कितनी अधिक है यह स्वतः स्पष्ट हो जाता है, जब पिता नरकगामी बन जाता है तब पुत्र को स्वर्ग प्राप्ति न हो ऐसा सम्भव नहीं है, क्योंकि प्रत्येक आत्मा का अपने उत्थान और पतन का दायित्व स्वयं पर निर्भर करता है, वास्तविकता यह है कि स्वयं कर्ता - स्वयं भोक्ता इस सूत्र को कदापि और कथमपि नकारात्मक रूप में नहीं लिया जा सकता है।
इस आगम में महाव्रतों के पालन में आत्म-शुद्धि से आत्मसिद्धि तक की प्रक्रिया प्रतिपादित है।
पुष्पिकासूत्र
इस आगम के दस अध्ययन हैं - श्रोताओं और अध्येताओं को कथाओं के माध्यम से स्वसमय और परसमय का ज्ञान दिया है। सोमिल ब्राह्मण की तपस्चर्या का वर्णन है, जो काल-कवलित होकर देवलोक में जन्म लेता है। बहुपुत्रिका देवी की कथा के द्वारा यह बताया गया है कि -रागादि भावों से जीव कष्टापन्न होता है। इन कथाओं में कुतूहल की प्रधानता है। सभी आख्यानों में वर्तमान जीवन पर उतना प्रकाश नहीं डाला गया है जितना उनके परलोक जीवन पर है। सांसारिक मोह, ममता और माया का सजीव चित्रण किया है। पुनर्जन्म और कर्मसिद्धान्त का समर्थन सर्वत्र मुखरित होता है।
इस प्रकार इस उपांग सूत्र में मानव जीवन में साधना की प्रधानता देते हुए मोह-ममता से विमुख होने का सन्देश है।
| जिनवाणी, वही, पृ. 312
24 For Private & Personal Use Only
Jain Education International
www.jainelibrary.org