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इस आगम में कालचक्र, चक्रवर्ती, विजययात्रा का आद्योपान्त विवेचन है, तीर्थंकर जन्म कल्याणक तथा सूर्य चन्द्र व नक्षत्रों का विस्तृत वर्णन है। जैन दृष्टि से सृष्टिविद्या के बीज इसमें उपलब्ध हैं। तीर्थंकर ऋषभ का प्रागैतिहासिक जीवन-चरित्र भी इसमें मिलता है। सूर्यप्रज्ञप्ति एवं चन्द्रप्रज्ञप्ति
यह षष्ठम उपांग है, इसमें सूर्य आदि ज्योतिषचक्र का वर्णन है। इसमें एक अध्ययन व 20 प्राभृत हैं। इसी प्रकार सातवें उपांग चन्द्रप्रज्ञप्ति में भी चन्द्र आदि ज्योतिषचक्र का वर्णन है, इसका भी एक अध्ययन और 20 प्राभृत हैं।
सूर्यप्रज्ञप्ति में गणित, ज्योतिषशास्त्र पर गहराई से विचार किया गया है, पाश्चात्य विद्वानों की दृष्टि से सूर्यप्रज्ञप्ति और चन्द्रप्रज्ञप्ति महत्त्वपूर्ण हैं। इनमें चन्द्र एवं सूर्य के आकार, तेज, गतिक्रम, उदय, अस्त, संवत्सरों के आदि अन्त, भूमि से ऊँचाई का, चन्द्रग्रहण व सूर्यग्रहण आदि विषयों पर विस्तार से वर्णन किया गया है। इनमें प्राचीन ज्योतिष सम्बन्धी मूलभूत मान्यताओं का संकलन किया है। इनके विषय की प्राचीन वेदांग-ज्योतिष के साथ तुलना की जा सकती है। मूहुर्त शास्त्र की दृष्टि से ये दोनों अत्यन्त महत्त्वपूर्ण शास्त्र हैं।' निरयावलिकासूत्र (कल्पिका)
इस आगम में नरक में जाने वाले जीवों का पंक्तिबद्ध वर्णन होने से इसे “निरयावलिका” कहते हैं। प्राचीन मगध का इतिहास जानने के लिए यह उपांग अत्यन्त उपयोगी है। इस उपांग में 10 अध्ययन हैं।
इसमें मूलतः मगध नरेश श्रेणिक एवं उनके पुत्र अजातशत्रु कुणिक का एवं अन्य पुत्रों का जीवन परिचय पूर्णतया उपलब्ध है। भगवान महावीर कालीन महायुद्ध - रथमूसल संग्राम अथवा महाशिला कंटक संग्राम का विस्तार से वर्णन है।
राजा श्रेणिक की रानियाँ जब पुत्र वियोग का वृतान्त सुनती हैं तब वे संसार की असारता एवं क्षणभगुरता का अनुभव कर दीक्षित हो जाती हैं, समग्र कर्मों का क्षयकर
जैन आगम : मनन और मीमांसा, आचार्य देवेन्द्रमुनि, वही, पृ. 269 जिनवाणी, वही, पृ. 311
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