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प्रस्तुत आगम में सांस्कृतिक और साहित्यिक इन दोनों दृष्टियों से वर्णन उपलब्ध है। कला, युद्ध, उद्यान, वापी, प्रसाधनघर आदि का सरस व साहित्यिक वर्णन है। यह आगम स्थविरकृत है।
प्रज्ञापनासूत्र
जिस आगम में विशिष्ट प्रकार से 'ज्ञापन' अर्थात् निरूपण किया जाता है तथा व्यवस्थित रूप से जीवादि पदार्थों का ज्ञान कराने वाला होने से यह आगम प्रज्ञापना कहा जाता है। इसके कर्ता आर्यश्याम है। प्रज्ञापना में 36 विषयों का निर्देश है। प्रकरण को 'पद' नाम दिया है। सम्पूर्ण ग्रन्थ की रचना प्रश्नोत्तर शैली के रूप में हुई है।
जीव-अजीव को मूल आधार बनाकर जीव के भेद-प्रभेद तथा एकेन्द्रिय से पंचेन्द्रिय जीवों की आयु, श्वासोच्छवास, आहार, सुख-दुःख आदि का वर्णन है। इसमें जीव से सम्बन्धित समग्र विषयों का वर्णन है, जैसे कषाय, लेश्या, इन्द्रिय कर्म, उपयोग, वेदना, समुद्धात आदि का भी सुन्दर निरूपण किया गया है। अंगसाहित्य में भगवतीसूत्र का जैसा स्थान है वैसा स्थान उपांग में इस सूत्र का है। यह भी एक प्रकार से ज्ञान-विज्ञान का अक्षय कोष है। साहित्य, धर्म, दर्शन, इतिहास और भूगोल के अनेक महत्त्वपूर्ण उल्लेख उपलब्ध हैं।
___ अन्त में समुद्धात के विषय में विस्तार से वर्णन है कि योग-निरोध के बाद शैलेषी अवस्था प्राप्त होती है, तत्पश्चात् आत्मा मुक्त हो जाती है। जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति
यह पांचवा उपांग सूत्र है। इसमें एक अध्ययन और सात वक्षस्कार हैं। वक्षस्कार का अभिप्राय प्रकरण से है।
जैन भूगोल तथा प्रागैतिहासिककालीन भारत के अध्ययन की दृष्टि से जम्बुद्वीपप्रज्ञप्ति का विशेष महत्त्व है। जैन भूगोल का ज्ञान इसलिए आवश्यक है कि आत्मा को अपनी विगत-आगत-अनागत यात्राओं का ज्ञान हो जाय, और उसे यह भी ज्ञात हो जाये कि इस विराट विश्व में उसका मौलिक स्थान कहाँ है?
' जैन आगम : मनन और मीमांसा, आचार्य देवेन्द्रमुनि, वही, पृ. 226 २ जिनवाणी (जैनागम विशेषांक), वही, पृ. 297
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