________________
इस प्रकार अनेक प्रमाणों से सिद्ध होता है कि देवों का अस्तित्व है। अभाव नहीं
है।
यदि इन्द्रादि देव न हो इन्द्र को आह्वान निरर्थक सिद्ध होता है, जैसे कि “इन्द्र आगच्छ मेघातिथे मेघवृषण", अर्थात् हे इन्द्र! वर्षा के लिए आओ। इत्यादि वाक्यों द्वारा जो इन्द्रादि का आह्वान होता है, वह भी निरर्थक हो जायेगा। इस प्रकार वेद, शास्त्र और युक्तियों से देवों की सत्ता सिद्ध होती है। गणधर अकम्पित जी की नरकलोक सम्बन्धी शंका व समाधान
ऋग्वेद काल के आर्यों ने पापी पुरुषों के लिए नरक स्थान का विचार नहीं किया था, किन्तु उपनिषदों में यह चिन्तन विद्यमान है। नरक कहाँ है? क्या है, इस विषय में विस्तृत चर्चा नहीं है। किन्तु यह कहा गया है कि नरक लोक अन्धकार से आवृत्त है, उसमें आनन्द का नाम नहीं है। इस संसार में अविद्या के उपासक मरणोपरान्त नरक को प्राप्त करते हैं।
जैसे – नचिकेता ने अपने पिता को बूढी गायों का दान करते हुए देखा तो पिता के भविष्य के विचार से दुःखी होकर उसने सोचा कि मेरे पिता इनके बदले मुझे ही दान में क्यों नहीं दे देते? क्योंकि यह मान्यता थी कि बूढ़ी गायों का दान करने वाला नरक में जाता है।' नरक के विषय में पुराणकालीन वैदिक परम्परा में कुछ विवरण मिलते हैं किन्तु स्पष्ट रूप से नहीं होने के कारण शंका होती है।
कहीं पर नरक का अस्तित्व बताया है कि “जो ब्राह्मण शुद्र का अन्न खाता है, वह नारक बनता है।
कहीं पर नारकों का अभाव सूचित करने वाले वाक्य मिलते हैं, “जीव मरकर नारक नहीं बनता। इस प्रकार के अस्तित्व सूचक व अभावसूचक वाक्यों से वेदज्ञ अकम्पित जी को शंका हुई कि नारक है या नहीं? ।
दूसरा कारण यह था कि चार गतियाँ मानी गई हैं नरक, तिर्यञ्च, मनुष्य और देव। इनमें से मनुष्य-तिर्यञ्च गति इस लोक में प्रत्यक्ष है तथा देव, चन्द्र, सूर्य के रूप में
। कठोपनिषद, 1.1.3 2 (क) नारको वै एषं जायते यः शुद्रान्नमश्नाति।
(ख) न हवै प्रेत्य नारकाः - विशेष्यावश्यक भाष्य, वही, पृ. 133
402
Jain Education International,
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org