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यह तर्क हो सकता है कि - जब देवों का अस्तित्व है तो वे प्रत्यक्ष क्यों नहीं दिखते हैं? इसका समाधान यह है कि -- हमारी नैत्र इन्द्रिय औदारिक स्थूल पुद्गलों को देखने में सक्षम हैं। देवों का शरीर औदारिक पुद्गलों से नहीं, बल्कि सूक्ष्म वैक्रिय पुद्गलों से बनता है, इसी कारण वे हमारे इन्द्रियग्राह्य नहीं हैं।' जो तीर्थंकरों के समवशरण में दृष्टिगोचर होते हैं, वह देवों द्वारा निर्मित वैक्रिय शरीर से बनाया हुआ उत्तर-वैक्रिय शरीर है। देवों में यह योग्यता है कि वे शरीर को अपनी शक्ति से छोटे-बड़े आदि विचित्र रुपों को धारण करके चर्म-चक्षुओं द्वारा ग्राह्य बना देते हैं।
यह प्रश्न हो सकता है कि - जब देवों का अस्तित्व है तब देव मनुष्यलोक में क्यों नहीं आते हैं? इसका समाधान यह है कि देवगण देवलोक में उत्पन्न होने पर स्वर्ग की दिव्य वस्तुओं में आसक्त हो जाते हैं, विषय भोगों में लिप्त हो जाते हैं तथा मनुष्यलोक की दुर्गन्ध उन्हें असह्य लगती है, इस कारण वे यहाँ नहीं आते। अपवाद स्वरूप वे कभी-कभी इस लोक में आते भी हैं- जैसे तीर्थंकर के जन्म, दीक्षा, केवलज्ञान, निर्वाण, कल्याणकों का प्रसंग होने पर हर्ष व्यक्त करने आते हैं। ..
कतिपय देव भक्ति से कतिपय देव उनका अनुसरण करते हुए आते हैं और कुछ अपनी शंका का समाधान करने आते हैं। इसके अतिरिक्त भी पूर्वभव के पुत्र, मित्र आदि से स्नेह के कारण, मित्र आदि को प्रतिबोध देने के लिए आने का पूर्व संकेत हो तो मृत्युलोक में आते हैं। तप-साधना से प्रभावित होकर, पूर्वभव के वैरी को पीड़ा देने के लिए या किसी स्नेही का उपकार करने आते हैं। स्थानांगसूत्र में भी देव आगमन के चार कारण बताये हैं - 1. उपकारी गुरु के दर्शन हेतु, 2. तपस्वी मुनि के दर्शन निमित्त से, 3. अपने स्वजनों को ऋद्धि बताने के लिए, 4. वचनपूर्ति हेतु मित्र को उद्बोधन करने हेतु।'
देवसिद्धि के अन्य प्रमाण भी हैं - जैसे -
देवास्तथा च मनुजान् प्रतिदुःख सौंख्ये, यल्लम्भयन्त इति सौम्ये। सुसिद्धमेव ।
यस्माच्च ते न नयनायनगोचराःस्यु, तत्कारणं भवति वैक्रियकाय योगः।। महावीर देशना, श्लोक 7, पृ. 185 'स्थानांगसूत्र, 41434, मधुकरमुनि, ब्यावर, पृ. 353
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