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है, वह स्वयं द्यु की पुत्री है। इस प्रकार देवों की उत्पत्ति के विषय में एक निश्चित मत वेदों में उपलब्ध नहीं है, जबकि जैन-दर्शन में देवों को वैक्रिय-शरीर धारी बताया है, वे किसी गर्भ से जन्म नहीं लेते अपितु औपपातिक होते हैं। वेदों में कहीं पर देवों का अस्तित्व बताया गया है, और कहीं पर उनके अस्तित्व पर शंका की गई है, जैसे कि यज्ञायुध अर्थात् यज्ञ सम्पन्न (यज्ञ करने वाले) “स एष यज्ञायुधी यजमानोऽजसा स्वर्गलोकं गच्छति” अर्थात् यज्ञ जिनका शस्त्र है, वह यजमान निश्चित रूप से स्वर्गलोक में जाता है।
हे अमृत सोम! हमने तुझे पिया और अमर हुए। प्रकाश को प्राप्त किया और देवों को जाना। अतः अब शत्रु हमारा क्या कर सकते हैं? मरणशील मानव की धूर्तता से हमारा क्या प्रयोजन है। इन वाक्यों से देवों का अस्तित्व सिद्ध होता है, किन्तु इनसे विरोधी अर्थ का प्रतिपादन करने वाले वेदवाक्य भी हैं, जैसे कि, “मायोपम इन्द्र-वरूण यम कुबेरादि देवों को कौन जानता है?" इन परस्पर विरोधी वाक्यों से शंका उत्पन्न होती है।
इस प्रकार गणधर मौर्यपुत्र के मन में शंका उद्भूत हुई कि - देवों का अस्तित्व है या नहीं?
दूसरा कारण यह था कि देवों में शक्ति सामर्थ्य होते हुए भी वे प्रत्यक्ष नहीं दिखते हैं, जैसे कि - नारकी परतंत्र है, तथा दुःखों से पूर्ण है अतः वे मृत्यु लोक में नहीं आ सकते, किन्तु देव समर्थ होने के कारण आ सकते हैं। एतदर्थ देवों के अस्तित्व पर शंका होती है।
समाधान - श्रमण भगवान महावीर ने कई युक्तियों से देवों के अस्तित्व को सिद्ध किया है।
जैन मान्यतानुसार देव चार प्रकार के होते हैं - 1. भवनपति
2. वाणव्यन्तर
। 'स एष यज्ञायुधी यजमानोजसा स्वर्गलोकं गच्छति" - विशेष्यावश्यक भाष्य, भाग 2, संपादक - पू.
वजसेन विजय जी. प्रका. भद्रंकर प्रकाशन (अहमदाबाद), पृ. 127 2 अपामसोम अमृता अभूम अगमत् ज्योतिरविदाम् देवान्, किं नूनमस्मान् कृणवदराति, किमु द्युतिममृत मर्त्यस्य। -
विशेष्यावश्यक भाष्य, वही, पृ. 127 3 को जानाति मायोपमान् गीर्वाणानिन्द्र-यम-वरुण कुबेरादिन् ।। विशेष्यावश्यक भाष्य, वही, पृ. 127 - किं मण्णे अत्थि देवा उयाहु णत्थि त्ति संसाओ तुज्झ।। - विशेष्यावश्यक भाष्य, गाथा 1866 5 सछंदयारिणो पुण, देवा दिव्वप्पभावजुत्ता य।
जं न कयाइ वि दरिसणमुवेति तो संसओ तेसु।। - विशेष्यावश्यक भाष्य, गाथा, 1868
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