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________________ 8 22. अगुरूलघु नामकर्म 23. पराघात नाम कर्म 24. उच्छवास नाम कर्म 25. आतप नाम कर्म 26. उद्योत नाम कर्म 27. शुभ विहायोगति नाम कर्म शुभ निर्माण नाम कर्म 29. त्रस नाम कर्म 30. बादर नाम कर्म पर्याप्त नाम कर्म प्रत्येक नाम कर्म स्थिर नाम कर्म शुभ नाम कर्म सुभग नाम कर्म सुस्वर नाम कर्म 37. आदेय नाम कर्म 38. यशकीर्ति नाम कर्म 39. देवायु नामकर्म 40. मनुष्यायु नाम कर्म 41. तिर्यञ्चायु नाम कर्म 42. तीर्थकर नाम कर्म' पाप कर्म का फलभोग : पापस्थानों का फल 82 प्रकार से भोगा जाता है : 1-5 पाँच ज्ञानावरणीय (मति, श्रूत, अवधि मनःपर्यव, केवल) 6-10 पाँच अन्तराय (दान, लाभ, भोग, उपभोग, वीर्यान्तराय) 11--15 पाँच प्रकार की निद्रा (निद्रा, निद्रा-निद्रा, प्रचला, प्रचला-प्रचला, स्त्यानर्द्धि) 16-19 चार दर्शनावरणीय (चक्षु, अचक्षु, अवधि, केवल) 20 नीच गोत्र 21 असातावेदनीय 22 मिथ्यात्वमोहनीय 23 -32 स्थावरदशक (स्थावर, सूक्ष्म अपर्याप्त, साधारण, अस्थिर, अशुभ, दुर्भग, दुस्वर, अनादेय, अयशकीर्ति) 33-35 नरकत्रिक (नरकगति, नरकायु, नरकानुपूर्वी) 36-51 अनन्तानुबन्धी 4, अप्रत्या. 4, प्रत्या. 4, संज्वलन 4 (क्रोध, मान, माया और लोभ) 52-60 हास्यनवक (हास्य, रति, अरति, भय, शोक, जुगुप्सा, स्त्रीवेद, पुरूषवेद, नपुंसक वेद) 61-62 तिर्यग्चगति, तिर्यग्चानुपूर्वी 63-66 जातिचतुष्क (एकेन्द्रिय, बेन्द्रिय, तेन्द्रिय, चउरेन्द्रिय) 67 अशुभ विहायोगति 68 उपघात नाम 69-72 वर्णचतुष्क (अशुभ वर्ण, गन्ध, रस, स्पर्श) 73-77 संहनन पंचक (ऋषभनाराच, नाराच, अर्द्धनाराच, कीलिका, सेवार्त) ' नवतत्त्व प्रकरण सार्थ, गाथा, 15-16-17, (हीरालाल जी दुगड़) आदिनाथ जैन श्वेताम्बर संघ, बेंगलोर, पृ. 86 368 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001737
Book TitleVishevashyakBhasya ke Gandharwad evam Nihnavavada ki Darshanik Samasyaye evam Samadhan Ek Anushila
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVichakshansree
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2006
Total Pages534
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size9 MB
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