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4. शयन पुण्य - शय्या बिछौना आदि सोने की सामग्री देना।
वस्त्र पुण्य - शीत से काँपते वस्त्रहीन व्यक्ति को वस्त्र देना। मन पुण्य - मन से शुभ विचार करना। वचन पुण्य - शुभ वचन बोलना। काया पुण्य - काया से सेवा करना। नमस्कार पुण्य - गुणीजनों एवं महापुरूषों को नमस्कार करना।
इन कारणों से पुण्यास्रव होता है।' अशुभ परिणामों तथा क्रियाओं के आधार पर पापासव : 1. प्राणातिपात - जीव हिंसा करना।
2.
मृषावाद - असत्य बोलना।
3.
5. .
अदत्तादान – चोरी करना। मैथुन - अब्रह्मचर्य सेवन करना। परिग्रह - धन आदि पदार्थों का संग्रह और उन पर ममत्व रखना। क्रोध - क्रोध, गुस्सा करना। मान - अहंकार या मद करना।
6.
माया - कपट करना। लोभ - तृष्णा करना। राग - सांसारिक पदार्थों पर आसक्ति या मोह करना। द्वेष – पदार्थों के प्रति द्वेष, ईर्ष्या या घृणा करना। कलह - क्लेश करना।
अभ्याख्यान -- मिथ्यादोषारोपण करना।
14. पैशुन्य – चुगली करना। 15. परपरिवाद - परनिन्दा करना।
' (क) नवविहे पुण्णे पण्णते.........। स्थानांगसूत्र, 9/25, मधुकरमुनि, ब्यावर, पृ. 669
(ख) तत्त्वार्थ सूत्र विवेचन, केवलमुनि जी मा., पृ. 258
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