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________________ 5. 6. 7. 8. 9. 10. 11. 12. 13. 14. ज्ञानप्रवादपूर्व सत्यप्रवाद पूर्व आत्मप्रवादपूर्व ज्ञातृत्व / भोक्तृत्व से सन्दर्भित विवेचना । कर्मप्रवाद पूर्व संकथन । प्रत्याख्यान प्रवाद पूर्व प्रत्याख्यान के भेद - प्रभेदों का निरूपण । विद्यानुप्रवाद पूर्व अनेक अतिशय सम्पन्न विद्याओं एवं उपविद्याओं और उनकी साधना की प्रज्ञापना । ज्ञान के भेद-प्रभेदों का विवेचन | सत्यवचन एवं संयम के स्वरूप का वर्णन । आत्मा के स्वरूप और उसकी व्यापकता तथा आत्मा के - ― — बन्ध्यपूर्व ज्ञान-तप आदि सत्कृत्यों को शुभ फल देने वाले और असत्कृत्यों को अशुभ फलदायक बताते हुए वर्णन | प्राणायुपूर्व – आयु और प्राण के भेदों की विस्तार से प्ररूपणा । क्रियाविशालपूर्व - भौतिक कलाओं और आध्यात्मिक क्रियाओं का विश्लेषण | लोकबिन्दुसार पूर्व विशिष्ट लब्धियों का सर्वागपूर्ण वर्णन । अष्टकर्मों की प्रकृतियों, स्थितियों एवं उसके परिणामों का Jain Education International चतुर्थ विभाग 'अनुयोग' प्रथमानुयोग तथा गंडिकानुयोग रूप है। प्रथमानुयोग में तीर्थंकरों के पंचकल्याण का व गंडिकानुयोग में कुलकर, चक्रवर्ती व महापुरुषों का ऐतिहासिक चरित्र चित्रण । पंचम चूलिका विभाग यन्त्र, तन्त्र एवं मंत्र सम्बन्धी सिद्धियों का वर्णन था। इस प्रकार दृष्टिवाद बहुत ही अतीव विशाल और महत्त्वपूर्ण अंग था । किन्तु अब केवल अतीत के अंचल में समाहित हो गया है। वर्तमान में यह दृष्टिवाद विलुप्त है ! उपांगसूत्र उपांग सूत्र वे हैं जो अंगों में कथित अर्थ का स्पष्ट बोध कराते हैं, वे उपांग कहे जाते हैं। ये स्थविर कृत होते हैं ।' द्वादश अंगों की रचना होने के पश्चात् श्रुतपुरुष के प्रत्येक अंग के साथ एक-एक उपांग की स्थापना की गई। जिस क्रम से अंगों की संख्या है उसी के अनुसार उपांगों की संख्या है, इसी तथ्य की स्वीकृति दी गई है, जैसे कि जिनवाणी, (जैनागम विशेषांक), देवेन्द्रमुनि जी, पृ. 16 — 19 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001737
Book TitleVishevashyakBhasya ke Gandharwad evam Nihnavavada ki Darshanik Samasyaye evam Samadhan Ek Anushila
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVichakshansree
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2006
Total Pages534
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size9 MB
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