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________________ जैन दर्शन के अनुसार साधक और सिद्ध अवस्था में अन्तर क्षमताओं का नहीं, बल्कि क्षमताओं को योग्यताओं में बदल देने का है। जैसे बीज वृक्ष के रुप में प्रकट होता है, वैसे ही आत्मा के निज गुण पूर्णरुप में प्रकट हो जाते हैं। - विशेषावश्यकभाष्य में मोक्ष के विषय में चर्चा की गई, वह कई मिथ्या मान्यताओं को दूर करती '' समीक्षा भगवान महावीर के ग्यारह गणधरों में इन्द्रभूति प्रभृति 5 वेदज्ञ विद्वानों की शंकाओं का भगवान महावीर द्वारा दिये गये समाधानों की चर्चा हम इससे पूर्व के अध्यायों में कर चुके हैं। आर्य सुधर्मा के शंका-समाधानोपरान्त श्रमण भगवान महावीर के पास दीक्षित हो जाने पर उन्हीं के विद्वद मण्डल के आर्य मण्डिक जी भी श्रमण भगवान महावीर के समवशरण में उपस्थित हुए तथा श्रमण भगवान महावीर द्वारा उनके मन में रही हुई बन्ध और मोक्ष सम्बन्धी शंका का उल्लेख किये जाने पर आश्चर्यचकित हुए । उन्होंने अपनी शंका को स्वीकारा, तथापि उनके तर्कों के द्वारा जैसे कि 1. पहले जीव और पश्चात् में कर्म के उत्पन्न होने, 2. पहले कर्म और बाद में जीव के उत्पन्न होने, 3. दोनों के साथ ही उत्पन्न होने के बारे में बन्ध-मोक्ष की व्यवस्था घटित नहीं होने के बारे में तर्क दिये । भगवान महावीर ने उनके संशय का निवारण करते हुए यह बतलाया कि उनकी युक्ति का सारांश यही था कि जीव कर्म का सम्बन्ध नहीं घट सकता था, तथा यह स्पष्ट किया कि इन दोनों में कार्यकारण भाव होने से शरीर और कर्म की सन्तान बीजांकुर की तरह अनादि है, अतः कर्म - सन्तान के अनादि होने से बन्ध भी अनादि सिद्ध होता है, उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि कर्म के अतीन्द्रिय होने पर भी वह कार्य द्वारा सिद्ध है तथा वह शरीर के लिए कारण रूप 1 उनकी इस शंका का कि बन्ध अनादि होने से वह अनन्त भी होना चाहिए तथा इस प्रकार मुक्ति की सम्भावना नकारने के बारे में भगवान महावीर ने यह स्पष्ट किया कि जिस प्रकार बीजांकुर सम्बन्ध अनादि होने पर भी दोनों में से किसी विशिष्ट बीज या अंकुर के अपने कार्य को उत्पन्न करने से पहले (जैसे किसी बीज को भून दिया जाना या Jain Education International 344 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001737
Book TitleVishevashyakBhasya ke Gandharwad evam Nihnavavada ki Darshanik Samasyaye evam Samadhan Ek Anushila
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVichakshansree
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2006
Total Pages534
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size9 MB
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