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________________ ईंधन के अभाव में राग-द्वेष रुपी अग्नि बुझकर शान्त हो जाती है। इस अर्थ में निर्वाण का अर्थ 'बुझना' है। यहाँ यह स्पष्ट है कि बुद्ध उच्छेदवादी नहीं थे, उनका मन्तव्य आत्मा के अस्तित्व का सम्पूर्ण नाश नहीं था बल्कि अहंकार तथा आत्माभिमान का विनाश, से है। तथा बुझने के अर्थ में आत्मा का बुझ जाना नहीं, बल्कि मन की पापपूर्ण स्थिति का बुझ जाना है।' बुद्ध ने निर्वाण को सर्वोच्च अवस्था के रुप में स्वीकार किया है, और उसे परमसूक्ष्म माना है - स्वास्थ्य सबसे बड़ी देन है, सन्तोष सबसे बड़ा धन है, विश्वास सबसे बड़ा सम्बन्ध है, और निर्वाण सबसे बड़ा सुख है। __ निर्वाण क्या है? इस शब्दों में अभिव्यक्त करना संभव है कोई भी मानवीय भाषा इस सत्य को व्यक्त नहीं कर सकती। भगवान बुद्ध उस समय मौन हो गये जब उनसे पूछा गया कि निर्वाण क्या है? इस सम्बन्ध में बुद्ध के वचन उपलब्ध हैं - "भिक्षुओं! न तो मैं उसे अगति और न गति कहता हूँ, न स्थिति और न च्यूति कहता हूँ, उसे उत्पत्ति भी नहीं कहता हूँ। वह न तो कहीं ठहरा है न प्रवर्तित होता है और न उसका कोई आधार है, यही दुःखों का अन्त है। अनन्त को समझना कठिन है, निर्वाण को समझना आसान नहीं है, जिस ज्ञान की तृष्णा नष्ट हो जाती है उसे (रागादिक्लेश) कुछ नहीं हैं। __ बौद्ध दर्शन में निर्वाण को इस प्रकार अनिर्वचनीय बताया है। निर्वाण की व्याख्या भावात्मक एवं अभावात्मक दोनों रूपों में की गई है। निर्वाण की भावात्मक व्याख्या - इस संदर्भ में बुद्ध का कथन है - भिक्षुओं! निर्वाण अजात, अभूत, अकृत, असंस्कृत है। क्योंकि इसमें जात, भूत, कृत और संस्कृत का व्युपशम होता है। अम्बालाल जी मा. अभिनन्दन ग्रन्थ, लेख - आ. देवेन्द्रमुनि, पृ. 263 भारतीय धर्मों में मुक्ति विचार, शिवमुनि, पृ. 160 'जैन बौद्ध गी. के आ. द. का तुलनात्मक अध्ययन, सागरमल जी, पृ. 428 (क) उदान, 8/3 (ख) इतिवृत्तक, 2/2/6 334 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001737
Book TitleVishevashyakBhasya ke Gandharwad evam Nihnavavada ki Darshanik Samasyaye evam Samadhan Ek Anushila
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVichakshansree
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2006
Total Pages534
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size9 MB
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