________________
सांख्य-योग दर्शन के अनुसार - अष्टांग योग से कैवल्य प्राप्त किया जा सकता
4 - ल 15000
1. यम - अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह।
नियम - शौच, सन्तोष, तप, स्वाध्याय और ईश्वर-शरणागति। आसन - साधक निश्चल भाव से सुख-पूर्वक एक आसन से बैठ सके। प्राणायाम - श्वाँस और प्रश्वाँस का रुक जाना ही प्राणायाम है। प्रत्याहार - प्राणायाम का अभ्यास करने पर जब मन और इन्द्रियाँ शुद्ध हो जाती हैं, तब इन्द्रियों की बाह्यवृत्ति को नियंत्रित कर लेने का अभ्यास करना। धारणा - मन को ध्यान के विषय पर केन्द्रित करना। ध्यान - ध्येय वस्तु पर एकाग्रचित्त से मन लगाना। समाधि - ध्यान करते-करते जब चित्त ध्येयाकार में परिणत हो जाता है, उसके
अपने स्वरुप का अभाव हो जाता है, उस समय के ध्यान को समाधि कहते हैं।' बौद्ध दर्शन में निर्वाण की अवधारणा
अन्य दर्शनों में जिसे मोक्ष कहा है, उसे बौद्धदर्शन में निर्वाण की संज्ञा प्रदान की है। बुद्ध के मतानुसार जीवन का चरम लक्ष्य दुःख की आत्यन्तिक निवृत्ति है, अथवा निर्वाण है, क्योंकि समस्त दृश्य सत्ता अनित्य है, क्षणभंगुर है, एकमात्र निर्वाण ही साध्य
है।
अभिधम्म महाविभाषा शास्त्र में निर्वाण शब्द की अनेक व्युत्पत्तियाँ बताई हैं, जैसे - वाण का अर्थ पुनर्जन्म का मार्ग और “निर्” का अर्थ छोड़ना अर्थात् स्थायी रुप से पुनर्जन्म के सभी मार्गों को छोड़ देना। वाण का अर्थ दुर्गन्ध और निर् का अर्थ 'नहीं' है। अर्थात् निर्वाण एक ऐसी स्थिति है जो दुःख देने वाले कर्मों की दुर्गन्ध से पुर्णतया मुक्त
महात्मा बुद्ध की दृष्टि से 'निव्वान' उच्छेद या पूर्ण क्षय है परन्तु यह पूर्णक्षय आत्मा का नहीं है, बल्कि लालसा, तृष्णा व जिजीविषा का तथा उसकी तीन जड़ों का है। जिस प्रकार अग्नि ईंधन के अभाव में बूझकर शान्त हो जाती है उसी प्रकार तृष्णा रुपी
योगसूत्र, 2/29
333
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org