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इन चारों में से नित्यकर्म, नैमित्तिककर्म से कर्म-बन्ध नहीं होता। काम्यकर्म तथा गोवधादि निषिद्धकर्म बन्ध के कारण है।
1.
कुमारिल ने कहा है कि - जो शरीर के बन्धन से छुटकारा पाना चाहता है उसे काम्य और निषिद्धकर्म नहीं करना चाहिए।' सांख्य योग दर्शन में कर्मबन्ध के कारण
सांख्य दर्शन संसार को दुःखमय मानता है, उसके अनुसार विश्व में तीन प्रकार के दुःख पाये जाते हैं -
आध्यात्मिक दुःख : जो मनुष्य के निजी शरीर और मन से उत्पन्न होते हैं। मानसिक व्याधियाँ और शारीरिक व्याधियाँ ही आध्यात्मिक दुःख है। आधिभौतिक दुःख : जो बाह्य पदार्थों के प्रभाव से उत्पन्न होता है। जैसे कि
काँटे का गढ़ना, तीर का चूभना। 3. आधिदैविक दुःख : यह दुःख बाह्य एवं अलौकिक कारण से उत्पन्न होता है।
नक्षत्र, भूत-प्रेतादि से प्राप्त दुःख।
कर्म बन्ध के कारण दुःख होता है, बन्धन अर्थात अज्ञान। आत्मा और प्रकृति (अनात्मा) के भेद का ज्ञान न रहना ही बन्धन है। बन्धन का कारण अविवेक (Nondiscrimination) और अहंकार है।
बन्धन तीन प्रकार का है : 1. प्राकृतिक 2. वैकृतिक
और 3. दाक्षणिक
1. 2.
प्राकृतिक : प्रकृति को आत्मा मानकर उसकी उपासना करना, प्राकृतिक बन्ध है। वैकृतिक : इन्द्रिय, पंचमहाभूत, अहंकार और बुद्धि को ही पुरुष मानकर उपासना करना। दाक्षणिक बन्ध : यज्ञ की समाप्ति पर प्राप्त दक्षिणा में ही आस्था रखकर आजीवन यज्ञादि कर्म करते रहना।
। भारतीयदर्शन की रूपरेखा, हरेन्द्रप्रसाद सिन्हा, वही, पृ. 285
वही पृ. 285
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