________________
करण के अभाव में जीवत्व का भी अभाव होगा, किन्तु जीवत्व जीव का अनादिनिधन-पारिणामिक भाव होने से नित्य है।'
ज्ञान का सम्बन्ध आत्मा के साथ हे, इन्द्रियों से नहीं। जैसे कि इन्द्रियों का व्यापार बन्द हो जाने पर भी स्मरणादि ज्ञान होते हैं, तथा कभी-कभी इन्द्रियों के सन्नियोग में अन्यमनस्क होने पर ज्ञान नहीं होता। अतः इन्द्रियों के अभाव में भी ज्ञान होता है, क्योंकि ज्ञान जीव का स्वभाव है। जैसे - गृह गवाक्ष से देवदत्त देखता है, वैसे ही आत्मा इन्द्रियरुपी गवाक्षों से ज्ञान प्राप्त करती हैं। गृह विध्वंस होने पर देवदत्त के ज्ञान का विस्तार बढ़ जाता है, अर्थात् बाहर से बाधारहित ज्ञान होता है, इसी प्रकार शरीर का नाश हो जाने पर इन्द्रियरहित आत्मा भी निर्वाध से ज्ञेय पदार्थों का ज्ञान करने में समर्थ होती है। ज्ञान जीव का स्वभाव है, इसे कैसे जाना जाता है?
ज्ञान जीव का स्वभाव है, यह स्वानुभव से सिद्ध होता है कि हमारी आत्मा ज्ञान-स्वरुप है, स्वसंवेदन प्रत्यक्ष से अथवा श्रवण न करने पर तथा न देखने पर भी अर्थ को क्षयोपक्षम के द्वारा जानने की जो क्षमता है, उससे सिद्ध होता है कि हमारी आत्मा ज्ञानगुण से युक्त है।
मुक्तात्मा में ज्ञान का अभाव है, यह कथन सर्वथा विरुद्ध है, क्योंकि ज्ञान आत्मा का स्वरुप है। “जीवो उवओग लक्खणो।" जैसे - परमाणु कभी भी रुपादि से रहित नहीं होता, वैसे ही आत्मा भी ज्ञानरहित नहीं हो सकती। यदि आत्मा अर्थात् जीव ज्ञानरहित हो जायेगा तो वह जड़ बन जायेगा। जड़ और चेतन दोनों अत्यन्त विलक्षण जाति वाले हैं, अतः जड़ कभी चेतन नहीं बन सकता और चेतन कभी जड़ नहीं बन सकता।'
अनुगान से भी सिद्ध होता है कि हमारी आत्मा ज्ञान-स्वरुप है। जैसे - हमारे शरीर में आत्मा है, वैसे ही दूसरों के शरीर में भी आत्मा है। वह आत्मा भी ज्ञान-स्वरुप ही है, क्योंकि उसमें प्रवृत्ति-निवृत्ति है। यदि वह आत्मा ज्ञान से रहित हो तो इष्ट में
' दव्वाऽमुत्तत्त सहावजाइओ तस्स दूरविवरीयं।
न हि जच्चंतरगमण जुत्तं नभसो व जीवत्तं ।। विशेषावश्यकभाष्य, गाथा 1994 तदुवरमे वि सरणो, तव्वावारे वि नोवलंभाओ।
इंदियभिन्नो आया, पंचगवक्खोवलद्धा वा।। विशेषावश्यकभाष्य, गाथा 1996 'नाणरहिओ न जीवो, सरुवओऽणुव्व मुत्तिभवेणं।
जं तेण विरुद्धमिदं, अस्थि य सो नाणरहिओ य।। विशेषावश्यकभाष्य, गाथा 1997
306
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org