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जहाँ गजसुकुमार और अतिमुक्तक कुमार जैसे श्रमणों के तेजस्वी व्यक्तित्व इसमें विर्णत हैं, वहाँ श्रेष्ठी सुदर्शन, अर्जुनमाली आदि के आख्यानों का मार्मिक और रोमांचकारी वर्णन है जो सम्पूर्ण जैन संस्कृति के लिए अनुकरणीय आदर्श है।
___ अन्तकृद्दशासूत्र के आठ वर्ग हैं, आठ वर्गों में राजा, राजकुमारों, रानियों और श्रेष्ठियों के दीक्षित जीवन का वर्णन है तथा उनके द्वारा कृत तपस्या का अत्यधिक हृदय स्पर्शिनी विवेचना है। प्रस्तुत आगम में कर्मयोगी श्रीकृष्ण का बहुमुखी व्यक्तित्व निहारा जा सकता है, जहाँ माता-पिता के प्रति भक्ति है वहाँ भगवान अरिष्टेनेमी के प्रति अनन्य निष्ठा है। एक ओर युद्ध क्षेत्र में वज्र से कठोर दिखलाई देते हैं वहीं दूसरी ओर सेवा व अनुकम्पा के क्षेत्र में उनका हृदय फूल से कोमल दिखाई देता है।' अतिमुक्तक कुमार की घटना से यह सिद्ध है कि साधना की दृष्टि से वय की प्रधानता नहीं है, बच्चा हो या बूढ़ा, हर व्यक्ति साधना के मार्ग पर चल सकता है।
अर्जुनमाली के प्रसंग में बताया है कि - हत्यारा और खूनी अर्जुन भी सत्संग व सद्बोध से मुनि बन गया। प्रस्तुत आगम में विविध कथाओं के माध्यम से सरल एवं मार्मिक दृष्टि से उन विविध तपश्चर्याओं का विवेचन किया गया है, जिनके द्वारा व्यक्ति अपनी आत्म विशुद्धि करके जीवन के अन्तिम लक्ष्य मुक्ति को प्राप्त करता है। यह वह आगम है जो भौतिकता के महादूर्ग पर आध्यात्मिक विजय पताका फहरा देता है। अनुत्तरोपपातिकदशा
जिन साधकों ने अपने तपोमय जीवन से अनुत्तर विमान अर्थात सर्वश्रेष्ठ देव विमानों में उपपात (जन्म) किया उसको अनुत्तरोपपातिक कहा जाता है। अनुत्तरोपपातिकों के साधनानुप्राणित जीवन का सजीव वर्णन इस सूत्र में उपलब्ध है एतदर्थ इसका नाम "अनुत्तरोपपातिक दशा” रखा गया है। यह आगम वर्तमान में तीन वर्गों में विभक्त है, जिनमें 33 महान व्यक्तियों के जीवन का सुन्दर एवं संप्रेरक वर्णन है।
धन्यकुमार जैसे श्रेष्ठी ने 32 इभ्यकन्याओं के साथ पाणिग्रहण किया, किन्तु जब त्यागने का प्रश्न आया तब एक क्षण का भी विलम्ब नहीं किया। उनके द्वारा जो तपश्चर्या
' नन्दीसूत्र, 88, अठवग्गा, अठउद्देसणकाला २ पी.एम. चौरड़िया, जिनवाणी (आगम विशेषांक), वही, पृ. 204 'श्वेता जैन, जिनवाणी (आगम विशेषांक) वही, पृ. 216
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