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________________ दशा शब्द दश की संख्या का वाचक है। इसमें श्रमणोपासक की जीवन चर्या सम्पूर्णतया वर्णित है। जैन धर्म में साधना की दृष्टि से धर्म का वर्गीकरण दो रूपों में प्रस्तुत किया है - 1. आगार, 2. अणगारधर्म। अणगार धर्म में सभी पाप प्रवृत्तियों का तीन करण- तीन योग से त्याग करना होता है जबकि आगारधर्म में कुछ अंशों में मर्यादा तथा छूट (आगार) रहती है। आगार धर्म का पालन करने वाला श्रमणोपासक कहलाता है। इसमें आनन्द, कामदेव, चुलनिपिता आदि ऐसे दस उपासकों का वर्णन है, जिन्होंने प्रभु महावीर का उपदेश श्रवण कर अपना जीवन सार्थक किया। इस सूत्र में वर्णित सभी श्रावक प्रतिष्ठित, समृद्धिशाली एवं बुद्धिशाली थे। उनका जीवन अनुशासित, व्यवस्थित एवं धर्मनिष्ठ था। इसमें आनन्द की स्पष्टवादिता, कामदेव की दृढ़ता और सहनशीलता, कुण्डकौलिक की सैद्धान्तिक पटुता, सकड़ाल की मिथ्यात्वी देव-गुरू-धर्म के प्रति निःस्पृहता आदि की चर्चा तथा श्रावकों के अनेक गुणों का उल्लेख है। सभी श्रमणोपासक धन-वैभव, मान-प्रतिष्ठा आदि की दृष्टि से सुखी थे, किन्तु उन्होंने जीवन के उत्तरार्द्ध में भौतिक सभी सुखों को त्यागकर पौषधशालाओं में एकान्त में बैठकर श्रावकधर्म उत्कृष्ट प्रतिमाओं को अंगीकृत करते हुए अपने जीवन को सार्थक किया। इस सूत्र में सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण तथ्य है - चार ज्ञान से सम्पन्न गौतमगणधर का आनन्द श्रावक से क्षमा याचना करने के लिए जाना। निश्छल विनयधर्म का ऐसा उदाहरण अन्यत्र दुर्लभ है। इस प्रकार यह अंगसूत्र श्रावक-श्राविकाओं के लिए ज्योतिस्तम्भ के रूप में मार्गदर्शक है। अन्तकृद्दशासूत्र प्रस्तुत आगम की अभिधा से पूर्णतः प्रकट है कि जन्म-मरण की परम्परा का मूलतः उच्छेद करने वाली परम-पावन आत्माओं का वर्णन है, इसके अध्ययन भी 10 हैं, एतदर्थ वर्णन-निष्पन्न नाम अन्तकृत दशा है। जन्म-मरण की परम्परा का अन्त करने वाली पवित्र आत्माओं का वर्णन होने से "अन्तकृत” और इसके प्राचीन संस्करणों में दस अध्ययन होने से इसे “दशा” कहा जाता है, इसका नाम "अन्तकृद्दशा” है। - इसमें श्रीकृष्ण वासुदेव की महारानियों के द्वारा एवं राजा श्रोणिक की काली आदि 10 रानियों के द्वारा विशिष्ट तपश्चर्याओं के माध्यम से मुक्ति प्राप्त करने का वर्णन है। 14 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001737
Book TitleVishevashyakBhasya ke Gandharwad evam Nihnavavada ki Darshanik Samasyaye evam Samadhan Ek Anushila
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVichakshansree
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2006
Total Pages534
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size9 MB
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