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________________ ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र जिसके द्वारा धर्म का कथन किया गया हो वह ज्ञाताधर्मकथा सूत्र है। कथा और दर्शन का यह एक संगम सूत्र है। इसके दो श्रुतस्कन्ध है। प्रथम श्रुतस्कन्ध में ऐतिहासिक और दृष्टान्त रूप दोनों प्रकार की कथाएं हैं। जहाँ मल्ली, द्रोपदी, मेघकुमार, तथा थावच्चापुत्र की कथाएँ ऐतिहासिक हैं वहाँ तुम्बे, कछुए आदि की कथाएँ रूपकशैली में प्रस्तुत हैं। इसी प्रकार जिनपाल एवं जिनरक्षित की कथा, सुषमा की कथा कल्पनाप्रधान यथार्थपूर्ण कथाएँ हैं। जहाँ मयूरी के अण्डों के दृष्टान्त से श्रद्धा और धैर्य के फल को प्रकट किया है वहाँ कछुओं के उदाहरण से संयमी और असंयमी साधक के परिणामों को प्रदर्शित किया है। रोहणी कथा से पाँच महाव्रतों की रक्षा की और अभिवृद्धि की प्रेरणा मिलती है।' उदकजात कथा में जल शुद्धि की प्रक्रिया द्वारा एक ही पदार्थ के शुभ-अशुभ दोनों रूपों को व्यक्त किया है। __ ज्ञाताधर्मकथा पशु कथाओं के लिए उद्गम सूत्र में परिगणित है। इस सूत्र में हस्ति, अश्व, खरगोश, कछुए, मयूर, मैंढ़क आदि को कथाओं के पात्रों के रूप ममें प्रस्तुत किया गया है। भारतीय संस्कृति के अन्य कतिपय पक्ष भी उल्लेखित हैं, जैसे विभिन्न कलाओं और विद्याओं में पुरुषों की 72 कलाओं का विस्तृत वर्णन इसमें उपलब्ध है। सामाजिक सेवा और पर्यावरण संरक्षण के अन्तर्गत नन्द मणिकार की कथा से ज्ञात होता है कि उसने समाज के सभी वर्गों के लिए वापी का निर्माण करवाया था और वहां सर्व प्रकार की सुख-सुविधाएं उपलब्ध कराई गई थी। यहां तक कि चिकित्साकेन्द्र भी निर्मित किये गये थे। इस प्रकार उस समय की आर्थिक व भौगोलिक परिस्थितियों का वर्णन इस शास्त्र में मिलता है। दृष्टान्तों के माध्यम से आध्यात्मिक शिक्षाओं को सहज, सरल और सरस शैली में निरूपित किया है। उपासकदशांगसूत्र उपासकदशांगसूत्र धर्मकथानुयोग के रूप में प्रस्तुत हुआ है। इसमें प्रभु महावीर युगीन दस उपासकों का पवित्र चरित्र अंकित है। उपासक शब्द जैन गृहस्थ के लिए तथा । प्रेमसुमन जी जैन, जिनवाणी (आगम विशेषांक), वही, पृ. 179 13 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001737
Book TitleVishevashyakBhasya ke Gandharwad evam Nihnavavada ki Darshanik Samasyaye evam Samadhan Ek Anushila
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVichakshansree
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2006
Total Pages534
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size9 MB
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