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व्याख्याप्रज्ञप्ति सूत्र
व्याख्याप्रज्ञप्ति का अपर नाम भगवतीसूत्र भी है। यह सूत्र शाब्दिक दृष्टि से विराटकाय रुप है। प्रश्नोत्तर शैली की दृष्टि से प्रस्तुत आगम में विषयवस्तु की विविधता है। इसमें अनेक दार्शनिक समस्याओं का समाधान भी प्राप्त है। साथ ही इसमें प्राणीशास्त्र, भौतिकशास्त्र, रसायनशास्त्र, स्वप्नशास्त्र, गणित, ज्योतिष, इतिहास, भूगोल, खगोल, मनोविज्ञान आदि अनेक विषयों पर प्रयोगी एवं उपयोगी विवेच्य सामग्री उपलब्ध है।
__समवायांग एवं नन्दीसूत्र के अनुसार व्याख्याप्रज्ञप्ति सूत्र में 36,000 प्रश्नों का समाधान है। समग्र प्रश्नों का उत्तर भगवान महावीर द्वारा दिया गया है। व्याख्याप्रज्ञप्ति सूत्र में 41 शतक तथा अनेक उद्देशक हैं।
प्रस्तुत आगम में श्रमण भगवान महावीर के स्वयं के जीवन का, उनके शिष्यों, गहस्थ-उपासकों का अन्य तीर्थकों और उनकी मान्यताओं का सविस्तृत परिचय प्राप्त होता है। जीव, पुद्गल, धर्म, अधर्म, लोक स्वसमय-परसमय आदि के विषय में सूक्ष्मतम विवेचन विद्यमान है। ऐतिहासिक दृष्टि से आजीवक संघ के आचार्य मंखलि गोशालक, जमालि, शिव-राजर्षि आदि के प्रकरण अत्यन्त महत्वपूर्ण हैं। तत्वचर्चा की दृष्टि से जयन्ति, मदुक श्रमणोपासक, रोह अणगार आदि के प्रकरण भी बहुत ही मननीय हैं।
इस आगम में महाराजा कुणिक और महाराजा चेटक के मध्य जो महाशिलाकंटक और रथमुशलसंग्राम हुए थे, उन युद्धों का अतिशय मर्मस्पर्शी वर्णन संप्राप्त है, जो उस समय का सबसे महा युद्ध था। गणित की दृष्टि से पार्खापत्तीय गांगेय अणगार के गणधर गौतम के साथ हुए प्रश्नोत्तर भी अत्यन्त मूल्यवान हैं। इस विराट विश्व में जो विविधता दृष्टिगत होती है वह जीव और पुद्गल के संयोग से है। इस आगम में जीव
और पुद्गल का जितना सुविशद् विश्लेषण किया गया है उतना किसी अन्य आगम में अनुपलब्ध है।
इस प्रकार प्रश्नोत्तर शैली में प्रस्तुत आगम स्थूलता से सूक्ष्मता की ओर प्रस्थित होता है।
'जैन आगम मनन और मीमांसा, देवेन्द्रमुनि जी, वही, पृ. 126
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