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________________ संग का अभाव जैसे मिट्टी के अनेक लेपों से युक्त तुम्बी पानी में डालने पर वह डूब जाती है, तथा लेपों के छूटने पर वह पानी के ऊपर आ जाती है, वैसे ही जीव भी प्रतिबन्धक कर्म द्रव्य से मुक्त होकर ऊर्ध्व गति करता है।' बन्धन से मुक्ति - जिस प्रकार कोष में रहा हुआ एरण्ड बीज कोष के चटकने पर उपर उछलता है, वैसे ही जीव भी कर्मकोष से बाहर निकलने पर स्वाभाविक रीति से ऊर्ध्व गमन करता है। तथा गति परिणाम - जैसे अग्नि शिखा और धूम स्वभावतः ऊपर जाते हैं, वैसे ही जीव भी कर्ममुक्त होते ही स्वाभाविक गति परिणाम से ऊपर गमन करता है। वैसे ही जीव भी ऊर्ध्व गति करता है। शंका : मण्डिक पुत्र पुनः एक शंका रखते हैं कि - आत्मा अरूपी द्रव्य है अतः वह सक्रिय कैसे हो सकती है, जैसे आकाशादि अरूपी पदार्थ निष्क्रिय है तब आत्मा भी निष्क्रिय होगी? इस शंका का समाधान श्रमण भ. महावीर ने इस प्रकार किया - आकाश अरूपी होने के साथ-साथ अचेतन है, किन्तु आत्मा अरूपी होते हुए भी चैतन्य रूप विशेष धर्मी है, तथा सक्रियत्व रुप धर्म से युक्त है। यह प्रत्यक्ष रुप से सिद्ध है तथा अनुमान से भी सक्रियत्व सिद्ध होता है। जैसे कुम्भकार कर्ता और भोक्तादि स्वरूपवान है, अतः वह सक्रिय है, वैसे ही आत्मा कर्ता और भोक्ता स्वभाव वाला है अतः सक्रिय है और देह के हलन-चलन से भी आत्मा का सक्रियत्व स्पष्ट दिखता है। यदि यह माने कि परिस्पन्दन देह में है, अतः देह को सक्रिय मानकर आत्मा को ADय गान लें। पर आत्मा के प्रयत्न से ही देह में परिस्पन्दन होता है। यदि आत्मा अक्रिय हो तो उसमें आकाश की तरह क्रिया भी नहीं होनी चाहिए, तथा अमूर्त प्रयत्न ' व्याख्या. शतक, 7/3/1 पृ. 265 वही, शतक, 7/3/1, पृ. 265 वही, शतक, 7/3/1, पृ. 265 सक्रियोऽमात्मा कर्तृत्वात् कुलालवत्। अथवा भोक्तृतवति। अथवा सक्रिय आत्मा प्रत्यक्षत एवं देह परिस्पन्द दर्शनात् यन्त्र पुरुषवत् - विशेष्यावश्यक, टीका पृ. 772 298 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001737
Book TitleVishevashyakBhasya ke Gandharwad evam Nihnavavada ki Darshanik Samasyaye evam Samadhan Ek Anushila
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVichakshansree
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2006
Total Pages534
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size9 MB
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