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अनादि ? सादि मानने पर जीव और कर्म दोनों में कौन पहले उत्पन्न होता है, और अनादि होने पर जीव का मोक्ष कभी भी सम्भव नहीं हो सकता । बन्ध के कारण क्या है? तथा मोक्ष में जाने के हेतु क्या है ? इसी प्रकार की शंका प्रभास जी को थी, उनको मोक्ष या निर्वाण के बारे में संशय था ।
जीव के स्वतंत्र अस्तित्व को मानने वाले सभी भारतीय दर्शनों ने बन्ध और मोक्ष के अस्तित्व को स्वीकार किया है, अनात्मवादी बौद्धों ने भी बन्ध-मोक्ष को माना है । समस्त दर्शनों ने अविद्या, मोह, अज्ञान, मिथ्याज्ञान को बन्ध अथवा संसार का कारण और विद्या अथवा तत्वज्ञान को मोक्ष का हेतु माना है । परन्तु मोक्ष के कारणभूत तत्वज्ञान के गौण - मुख्य भाव के सम्बन्ध में विवाद है। उपनिषदों के ऋषियों ने मुख्यतः तत्वज्ञान को कारण माना है और कर्म उपासना को गौणस्थान दिया है। यही बात बौद्धदर्शन, न्यायदर्शन, वैशेषिक दर्शन, सांख्य दर्शन, आदि दर्शनों को भी मान्य है। मीमांसादर्शन के अनुसार कर्मप्रधान है और तत्वज्ञान गौण है । जैन दर्शन ज्ञान-क्रिया अर्थात् ज्ञान - चरित्र के समुच्चय को मोक्ष का कारण स्वीकार करता है।' आचार्य उमास्वाति ने भी लिखा है "सम्यग्दर्शन ज्ञान चारित्राणि मोक्ष मार्गः । " 2
इस प्रकार के अनेक प्रकार के तथ्य होने के कारण मण्डिक और प्रभास जी के मन में शंका उपस्थित हुई, जिसका समाधान श्रमण भगवान महावीर ने किया व जिन भद्रगणिकृत विशेषावश्यकभाष्य में गणधरवाद के अन्तर्गत तार्किक विवेचन दिया है, तथा उनके मन रही शंका का निस्तार किया ।
यह चिन्तन कर लेने पर हमें यह देखना है कि विशेषावश्यकभाष्य में किस प्रकार समस्याओं का समाधान किया गया है।
विशेषावश्यकभाष्य में बन्ध की समस्या और समाधान
आत्मा और कर्म परमाणुओं का संयोग होना बन्ध है। सभी भारतीय दर्शनों में कर्मबन्ध के संसरणों को एक आवश्यक सिद्धान्त के रूप में स्वीकार किया गया है। ज्ञान, ध्यान और तप रूप समस्त साधनाएँ बन्धन से मुक्ति लिए ही की जाती है। कर्मबन्ध तथा बन्ध के कारणों को जान लेने पर भी कर्म और आत्मा के सम्बन्ध को लेकर कई
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गणधरवाद (प्रस्तावना) दलसुखभाई मालवणिया, पृ. 107
2 " सम्यग्दर्शन ज्ञान चारित्राणि मोक्षमार्ग" तत्वार्थसूत्र 1/1
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