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और नैतिक मूल्य साधन मूल्य है, तथा काम और मोक्ष साध्य मूल्य है। इस प्रकार दो मार्ग है - सांसारिक सुखों का मार्ग (काम) और कल्याण का मार्ग (मोक्ष) । कठोपनिषद में इन्हें प्रेय और श्रेय मार्ग कहा गया है। नचिकेता इहलौकिक और पारलौकिक सुख के प्रलोभन में नहीं पडता, वह केवल सत्य मार्ग जानने की हठ करता है। इसी प्रकार भौतिक सम्पत्ति से मैत्रीयी का असन्तोष होने पर वह सरल प्रश्न करती है कि "मैं ऐसी सम्पत्ति को लेकर क्या करूंगी, जिससे मुझे अमरत्व की प्राप्ति नहीं होती"। इससे ज्ञात होता है कि मोक्ष ही परम तत्व है।'
जैन दर्शन में भी आत्मा का लक्ष्य परमात्म पद प्राप्त करने का है। जैन आचार दर्शन आत्मा के बन्धन और मुक्ति की अवधारणा में पूर्ण आस्था रखता है। आत्मा की विभाव अवस्था बन्धन की अवस्था है और स्वभाव अवस्था ही मुक्ति है, अर्थात् वासनाओं के मल से युक्त अवस्था बन्धन और विशुद्ध आत्मतत्व की अवस्था मुक्ति है।
मुक्ति चरम सत्य की अनुभूति का विषय है, आत्मजागरण का क्षेत्र है। यह एक ऐसी अवस्था है - जहां आवागमन व जन्म-मरण का कोई प्रश्न नहीं उठता। वह अवर्णनीय है। मुक्ति प्राप्त करने के लिए बन्धन से मुक्त होने के लिए बन्धन के कारणों व बन्ध का स्वरूप समझना आवश्यक है। “सूत्रकृतांगसूत्र में कहा गया है कि - “किन कारणों से आत्मा बन्धती है? जिसे जानकर उन बन्धनों को दूर कर सके।"2 . यहाँ यह प्रश्न भी उपस्थित होता है कि मूर्त कर्म का अमूर्त आत्मा से कैसे सम्बन्ध होता हैं? या मूर्त कर्म अमूर्त आत्मा पर अपना प्रभाव कैसे प्रभाव डालता है? जिस प्रकार वायु और अग्नि का अमूर्त आकाश पर किसी प्रकार का प्रभाव नहीं पडता, उसी प्रकार अमूर्त आत्मा पर भी मूर्त कर्म का कोई प्रभाव नहीं पड़ना चाहिए। इन सब प्रश्नों के उत्तर आगे दिये गये हैं।
बन्धन और मुक्ति की समस्या बडी जटिल समस्या है। यह समस्या वर्तमान में ही नहीं, बल्कि भगवान महावीर के समक्ष भी थी। वेद-विद्वान ब्राह्मण मण्डिक जी के मन में ये शंकाएँ थीं कि जीव का कर्म के साथ संयोग ही बन्ध है तो वह बन्ध सादि है या
' (क) डा. अशोक कुमार लाड, भारतीय दर्शन में मोक्ष चिन्तनः एक तुलनात्मक अध्ययन मध्यप्रदेश, हिन्दी ग्रन्थ
अकादमी, भोपाल पृ. 4 (ख) बृहदारण्यकउपनिषद, 2/4/3 सूत्रकृतांग सुत्र 1/1/1
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