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बनेगा। इनका कहना है कि जीव का एक गति से दूसरी गति में गत्यन्तर-जात्यन्तर नहीं होती है।
यहाँ यह प्रश्न पैदा होता है कि - यदि अश्व मृत्यु पाकर पुनः अश्व ही बनता है तब प्रथम अश्व बना ही कहां से? अनादिकाल से उस जीव का अश्व के स्वरूप में ही अस्तित्व मानना पडेगा, और ऐसा मानते हैं तो वह जीव अश्व के स्वरूप में कैसे आया? कब आया? उस आत्मा का एकेन्द्रिय पर्याय से पञ्चेन्द्रिय पर्याय तक विकास कैसे हुआ? फिर उत्थान और पतन का सिद्धान्त ही समाप्त हो जायेगा? विकासवाद का भी अस्तित्व नहीं रहेगा। दुसरा प्रश्न यह है कि - जीव सीधा ही पंचेन्द्रिय पर्याय में स्थलचर के रूप में कहां से आ गया, क्योंकि जीव की यात्रा निगोद से शुरू होती है, सभी जीव निगाद के गोले में से निकले है, वहां तो एक-एक गोले में अनन्त जीव है। निगोद से निकला जीव सूक्ष्म स्वरूप से उपर उठकर बादर साधारण वनस्पतिकाय में कई जन्म धारण करता है। वनस्पतिकाय का चक्र पूरा करके पृथ्वीकाय, अपकाय, तेउकाय, वायुकाय में कई असंख्य जन्म बिताकर प्रत्येक वनस्पति में आता है, जिससे जीव द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय पर्याय में आता है। वहां से पंचेन्द्रिय पर्याय में पशु-पक्षी के रूप में जन्म लेता है, इस तिर्यंच गति में से निकलकर भी कई बार नरक गति में चला जाता है।
इस प्रकार जीव का विकास धीरे-धीरे होता है, क्रमशः पंचेन्द्रिय पर्याय तथा उसमें भी मनुष्यगति प्राप्त होना अन्तिम विकास है। यदि विकासवाद समाप्त हो गया तो फिर किसी का मोक्ष भी नहीं होगा। तथा धर्म या कर्मक्षय के लिए पुरुषार्थ करना, सब निरर्थक हो जायेगा। संसार को एक स्थिर स्वरूप में मानना पड़ेगा। फिर पाप-पुण्य निष्फल हो जायेंगे। पापकर्मानुसार नरक में कोई जाए और फल भोगे, यह तथ्य भी नहीं रहेगा, उसी तरह किए हुए पुण्य से स्वर्ग गमन की सम्भावना भी नहीं रहेगी। इस तरह कई विसंगतियां आयेगी। न कर्मवाद रहेगा और न ईश्वरकतृत्व रहेगा, जबकि ईश्वरवादी सृष्टि का कर्ता ईश्वर को मानते हैं, परन्तु ऐसी स्थिति में ईश्वर की कोई उपयोगिता ही नहीं रहेगी। ईश्वर निष्क्रिय-निरर्थक सिद्ध होगा। फिर यह प्रश्न उठेगा कि ऐसी नित्यभावमयी सृष्टि ईश्वर की निरर्थकता और निष्क्रियता में कैसे बनी? कब बनी? क्यों बनी? यदि बनाई तो फिर प्रलय का प्रश्न ही खड़ा नहीं होता। ईश्वर ने क्यों किसी को एकेन्द्रिय में रखा, और क्यों पंचेन्द्रिय में रखा? और जिसको पंचेन्द्रिय मनुष्य में रखा उसका भी स्थान
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