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है तो वह शुद्धलोक को प्रा५। करण है।' था राधिकाल में हो.) पर 48 कगारा। मनुष्यों में जन्मता है और तमोगुण (अशुभभाव) के वृद्धि से मूढ़ योनियों में उत्पन्न होता
गीता में यह भी माना गया है कि प्राणी अपने शुभाशुभ कर्मों के आधार पर उच्चलोक (दैवीय जीवन) मध्यलोक (मानवीय जीवन) और अधोलोक (नारकीय जीवन एवं पशु जीवन) को प्राप्त करता है। जैनदर्शन में कर्म और पुनर्जन्म
जैनदर्शन ने कर्म सिद्धान्त के साथ-साथ आत्मा की अमरता और पुनर्जन्म को स्वीकार किया है। जैन विचारधारा के अनुसार प्राणियों में क्षमता एवं अवसरों की सुविधा आदि की जो जन्मना नैसर्गिक विषमता है, उसका कारण प्राणी के अपने ही पूर्वजन्मों के कृत्य है। अनुकूल एवं प्रतिकूल परिवेश की उपलब्धि भी शुभाशुभ कृत्यों का फल है। ___ स्थानांगसूत्र में भूत, वर्तमान और भावी जन्मों में शुभाशुभ कर्मों के फल-सम्बन्ध की दृष्टि से आठ विकल्प माने गये हैं - 1. वर्तमान जन्म के अशुभ कर्म वर्तमान जन्म में ही फल देवें। 2. वर्तमान जन्म के अशुभ कर्म भावी (अगले) जन्मों में फल देवें ।
भूतकालीन जन्मों के अशुभ कर्म वर्तमान जन्म में फल देवें । भूतकालीन जन्मों के अशुभ कर्म भावी जन्मों में फल देवें। वर्तमान जन्म के शुभ कर्म वर्तमान जन्म में फल देवें। वर्तमान जन्म के शुभ कर्म भावी जन्मों में फल देवें। भूतकालीन जन्मों के शुभ कर्म वर्तमान जन्म में फल देवें। भूतकालीन जन्मों के शुभ कर्म भावी जन्मों में फल देवें।'
इस प्रकार जैन दर्शन में वर्तमान जीवन का सम्बन्ध भूतकालीन एवं भावी जन्मों से माना गया है।
जैन दर्शन के अनुसार चार प्रकार की गतियाँ है : 1. देव 2. मनुष्य । 3. तिर्यञ्च, व 4. नरक
। गीता, 14/14
गीता, 14/15 ३ स्थानांगसूत्र, 8/
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