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________________ विजातिय पदार्थ की है, जो आत्माओं की शद्धता को भंग करके उनकी स्थिति में भेद डालता है, विरूपता या विभिन्नता पैदा करता है। आत्मा को मणि की उपमा देते हुए तत्वार्थश्लोकवार्तिक में इसी तथ्य को उद्घटित किया गया है : मलावृतमणेव्यक्तिर्याथानेक विधेक्ष्यते। कर्मावृत्तात्मन स्तद्वत् योग्यता विविधा न किम् ।।' जिस प्रकार मल से आवृत मणी की अभिव्यक्ति विविध रूपों में होती है, उसी प्रकार कर्म-मल से आवृत आत्मा की विविध अवस्थाएँ दृष्टिगोचर होती है।। यदि कर्म को न माना जाए तो जन्म-जन्मान्तर एवं इहलोक-परलोक का सम्बन्ध घटित नहीं हो सकेगा। कर्म के अनुसार ही प्राणी को गति मिलती है। यही प्रश्न भगवान ने विशेषावश्यकभाष्य के अन्तर्गत भी उठाया है - कर्म के अभाव में परलोक की सत्ता ही नहीं रहेगी, तथा भव का नाश भी निष्कारण मानना पडेगा, मोक्ष के लिए तपस्या आदि अनुष्ठान भी व्यर्थ ही सिद्ध होंगे। जबकि प्रत्येक दर्शन में कर्म को किसी न किसी अवस्था में मानते है। विभिन्न दर्शनों और धर्मग्रन्थों में कर्म और पुनर्जन्म का निरूपण : ऋग्वेद में कर्म और पुनर्जन्म का संकेत : ___ ऋग्वेद वैदिक साहित्य में सबसे प्राचीन धर्मशास्त्र माना जाता है। ऋग्वेद में कर्म की धारणा अपने पूर्व रुप में ऋत की धारणा से प्राप्त होती है। उसकी एक ऋचा में बताया गया है कि "मृत मनुष्य की आँखें सूर्य के पास और आत्मा वायु के पास जाती है, तथा यह आत्मा अपने कर्म के अनुसार पृथ्वी में, स्वर्ग में, जल में और वनस्पति में जाती है। इस प्रकार कर्म और पुनर्जन्म के सम्बन्ध का प्राचीन संकेत मिलता है। ' तत्त्वार्थ श्लोक वार्तिक, 191 विशेषावश्यकभाष्य, गाथा 1640 ऋग्वेद, 10/16/3 268 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001737
Book TitleVishevashyakBhasya ke Gandharwad evam Nihnavavada ki Darshanik Samasyaye evam Samadhan Ek Anushila
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVichakshansree
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2006
Total Pages534
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size9 MB
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