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मनुस्मृति में भी लिखा है कि कर्म के कारण ही मनुष्य को उत्तम मध्यम या अधम
आदि गति की प्राप्ति होती है।
जैन कर्मसिद्धान्त के मर्मज्ञों ने 14 द्वार बताये है
2. इन्द्रिय
5. वेद
8. संयम
11. भव्य
14. आहार
इन 14 बातों को लेकर जीवों में जो विभिन्नताएँ होती है, उनका मूलकारण कर्म ही
है जैसे :
I
1.
2.
3.
4.
5.
1. गति
4. योग
7. ज्ञान
10. लेश्या
13. संज्ञी और
गति : हम देखते हैं कि सांसारिक जीवों में मनुष्य, देव, नरक, तिर्यंच आदि अनेक प्रकार की विषमता, विसदृशता एवं विविधता है। इसका भी कोई न कोई कारण होना चाहिए। एक जीव देवलोक में सुख भोग रहा है और एक जीव नरक में पड़ा यातनाएँ भोग रहा है।
इन्द्रिय: कोई जीव एक इन्द्रिय वाला है तो कोई दो इन्द्रिय वाला है, इस तरह जीवों को इन्द्रियों की प्राप्ति का यह अन्तर भी कर्म के अस्तित्व को स्पष्ट करता
है।
3. काय
6. कषाय
9. दर्शन
12. सम्यक्त्व
काया कई जीव त्रसकाय है, जबकि कई जीव स्थावरकाय है, इन जीवों की
:
विभिन्नता का मूल कारण कर्म है।
योग : सांसारिक जीवों के मन, वचन और काया के योगों को लेकर भी विभिन्नताऐं दृष्टिगोचर होती हैं, किसी में शक्ति, क्षमता कम होती है किसी में अधिक ।
वेद : सांसारिक जीवों में पुरुष और स्त्री या नर और मादा के अन्तर के अतिरिक्त जीवों की कामवासना में जो अन्तर पाया जाता है, वही भी कर्म के कारण है ।
शुभाशुभ फलं कर्म, मनोवागु देह सम्भवम्।
कर्मजा गतयो नृणामुत्तमाधम मध्यमा ।। मनुस्मृति, अ/2/3
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