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________________ धनवान-धनहीन, बलवान-निर्बल, निरोगी-रोगी,, भाग्यवान-अभागा इन सब में मनुषत्व समान होने पर भी जो अन्तर या भेद दिखाई देता है, वह सब कर्मकृत है। भगवतीसूत्र में गौतम स्वामी ने पूछा- हे भगवान! क्या जीव के सुख-दुःख तथा विभिन्न प्रकार की अवस्थाएं कर्म की विभिन्नता-विचित्रता या विविधता कर्म पर निर्भर है, या अकर्म पर? भ. महावीर ने कहा- गौतम! संसारी जीवों के कर्मबीज भिन्न-भिन्न होने के कारण उनकी अवस्था या स्थिति में भेद है, अकर्म के कारण नहीं।' आचारांगसूत्र में बताया है कि “कर्म रूपी बीज के कारण ही संसारी जीवों में अनेक उपलब्धियाँ, विभिन्न अवस्थाऐं देखी जाती है"।' बौद्ध दर्शन में भी विचित्रता का कारण कर्म माना है, राजा मिलिन्द ने नागसेन से प्रश्न पूछा- भगवन! जो पाँच आयतन (आँख, कान, नाम, जीभ और चमड़ी) है, क्या ये विभिन्न कर्मों के फल है या एक ही कर्म के फल है? राजन! विभिन्न कर्मों के फल है, एक ही कर्म के फल नहीं है। जैसे यदि कृषक, एक खेत में पृथक-पृथक जाति के बीज बोये तो अनेक जाति के फल प्राप्त होंगे, वैसे ही ये पाँच आयतन पृथक्-पृथक् कर्मों के फल है। पुनः राजा मिलिन्द ने प्रश्न किया - भन्ते! सभी मनुष्य के समान न होने का क्या कारण है? कोई अल्पायु, कोई दीर्घायु, कोई ऊँचे कुल में तो कोई नीचकुल में, मूर्ख व विद्वान क्यों होते हैं? __ स्थविर नागसेन ने उत्तर देते हुए कहा कि - जैसे सभी वनस्पतियाँ एक जैसी नहीं होती, कोई खट्टी, कोई मीठी तो कोई कडवी होती है, क्योंकि बीजों के भिन्न होने के कारण वनस्पति भी भिन्न-भिन्न होती है, वैसे ही जीवों की विविधता का कारण भी कर्म होता है। सभी जीव अपने कर्मों के अनुसार ही नाना गतियों और योनियों में उत्पन्न होते ' देवेन्द्रसूरी जी, कर्मग्रन्थ टीका, प्रथम 'भगवतीसूत्र, 1215 कम्मुणा उवाही जायइ, आचारांगसूत्र, 1/3/1 'मिलिन्द पहो, पृ. 68 255 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001737
Book TitleVishevashyakBhasya ke Gandharwad evam Nihnavavada ki Darshanik Samasyaye evam Samadhan Ek Anushila
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVichakshansree
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2006
Total Pages534
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size9 MB
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