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इस प्रकार अनुमान से भूतों का अस्तित्व सिद्ध होता है। जैसे प्रत्येक प्राणी में चैतन्य प्रत्यक्ष है, वैसे ही पंचभूतों में भी चैतन्य है।
पृथ्वी सचेतन है - पृथ्वी चेतन है, क्योंकि उसमें स्त्री के समानजन्म - जरा, जीवन, मरण, क्षतसंरोहण, आहार, रोग, चिकित्सा इत्यादि लक्षण पाये जाते हैं।
जल - जल में चैतन्य है। जमीन खोदने से जमीन से सजातीय-स्वरूप स्वाभाविक रूप से पानी निकलने के कारण वह मैंढ़क के समान सजीव है। कोई भी पानी हो, वह चेतन से युक्त है।
अग्नि की सजीवता - जैसे मनुष्य भोजन करने से वृद्धिगत होता है और नहीं करने से दुर्बल होता है। वैसे ही अग्नि में भी लकड़ी आदि आहार से वृद्धि एवं विकार दिखाई देते हैं। अतः वह मनुष्य के समान सजीव है।
वायु की सजीवता - जैसे गाय बिना किसी प्रेरणा से ही अनियमित रूप से तिरछा गमन करती है वैसे ही वायु भी गति करती है, अतः वह सजीव है।
वनस्पति में चैतन्य - वनस्पति में अनन्त जीव है इसे सिद्ध करने के लिए कई हेतु हैं - 1. लाजवन्ती वनस्पति क्षुद्र जीव के समान केवल स्पर्श से संकुचित हो जाती है। 2. लताऐं अपना आश्रय प्राप्त करने के लिए मनुष्य के समान वृक्ष की ओर बढ़ती हैं।
शमी आदि वनस्पति में निद्रा, प्रबोध, संकोच आदि के लक्षण पाये जाते हैं। 4. कई वृक्ष शब्दादि पांच विषयों का उपभोग कर विकास को प्राप्त होते हैं, जैसे -
बकुल शब्द का, अशोकवृक्ष रूप का, कुरूबक गन्ध का, विरहक रस का, चम्पक
वृक्ष स्पर्श का। 5. जैसे मनुष्य आदि जीवों में एक बार अर्श को काटने के बाद फिर उसमें माँस के
अंकुर उत्पन्न होते हैं, वैसे वृक्ष समूह, लवण आदि में भी जब तक वे मूल स्थान में होते हैं, तब तक एक बार काट लेने के बाद भी पुन: स्वजातिय अंकुरों का प्रादुर्भाव होता है।
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