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यदि यह माने कि परभाग और मध्यभाग नहीं है, क्योंकि अप्रत्यक्ष है, तो अग्रभाग कहाँ से होगा। यहाँ अप्रत्यक्ष हेतु होने से ही इन्द्रियों की और पदार्थ की सत्ता सिद्ध होती है। क्योंकि अक्ष (इन्द्रिय) के आश्रित होकर पदार्थ को जानने वाला ज्ञान प्रत्यक्ष कहलाता है। जो प्रत्यक्ष न हो वह अप्रत्यक्ष । इन्द्रिय तथा पदार्थ के अभाव में प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष का भेद नहीं हो सकता।
जैसे हमें किसी बात पर संशय है वह दूसरों के लिए अप्रत्यक्ष है, पर संशय विद्यमान है, उसी प्रकार परभाग और मध्यभाग अप्रत्यक्ष होने पर भी है। जैसे - ग्राम, नगर आदि दूसरे लोगों को प्रत्यक्ष है वैसे ही पाँच भूतों का अस्तित्व है। सर्वशून्य नहीं है।
पाँच भूतों के अस्तित्व के लिए अनुमान -
पदार्थ की सिद्धि के लिए तीन प्रमाण हैं - प्रत्यक्ष, अनुमान और आगम। प्रत्यक्ष से तो भूतों का अस्तित्व सिद्ध होता है, क्योंकि भूतों के अस्तित्व के विषय में किसी को भी संदेह उत्पन्न नहीं होता।
अनुमान से भी भूतों का अस्तित्व सिद्ध होता है - संसार में सभी पदार्थ विद्यमान हैं, क्योंकि उनके विषय में संदेह होता है। जिनके विषय में संदेह होता है, वे स्थाणु-पुरुष की तरह विद्यमान होते हैं। अतः संशय होने से पदार्थों का अस्तित्व मानना चाहिए।
__पृथ्वी, जल और अग्नि तो प्रत्यक्ष दिखते हैं, अत: इनके लिए अनुमान की आवश्यकता नहीं है।
__ वायु का अस्तित्व - स्पर्शादि गुण है, उनका गुणी अदृश्य होने पर विद्यमान होना चाहिए - जैसे - रूप गुण का गुणी घट है, वैसे ही स्पर्श, शब्द, कम्पन आदि का जो गुणी है, वह वायु है।
आकाश का अस्तित्व -- जैसे पानी का आधार घड़ा है, क्योंकि मूर्त तत्त्वों के लिए आधार की आवश्यकता होती है, वैसे ही पृथ्वी, जल, अग्नि और वायु इन सबका कोई आधार होना चाहिए।'
1 “णत्थि परमज्झभागा, अपच्चक्खत्तो मती होज्जा। __णणु अक्खत्थावत्ती, अपच्चक्खत्तं हाणी वा।।" विशेषावश्यकभाष्य, गाथा 1746 2 "रुवस्स घडो व्व, गुणी जो तेसि सोऽणिलो णाम।" विशेषावश्यकभाष्य, 1749 3 जं भूत्ताण भाणं तं वोमत्त! सुव्वत्तं। विशेषावश्यकभाष्य, गाथा 1750
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