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को उत्पन्न करने वाले गला, होठ, तालु आदि सामग्री सर्व-प्रत्यक्ष है, अतः सामग्री का अभाव कहाँ है? यदि यह कहें कि काम, स्वप्न, भय, उन्माद और अविद्या के कारण मानव अविद्यमान वस्तु को भी जानता है, किन्तु वास्तविकता में पदार्थ होते नहीं हैं, वैसे ही वचन सामग्री दिखाई दे सकती है। यदि अविद्यमान सामग्री दिखाई देती है तो कूर्म केश क्यों दिखाई नहीं देते हैं। क्योंकि दोनों स्थान पर अविद्यमानता समान है, दोनों समान रूप से शून्य है। अतः मानना चाहिए कि सामग्री का अभाव नहीं किन्तु सद्भाव है।' पुनः प्रश्न उठता है कि - वचनोत्पादक सामग्री रूप वक्ता और उसके वचन सत् है या असत् है? यदि सत् है तो शून्यता का अभाव होगा। और यदि असत् है तो 'यह जगत् शून्य है' किसने कहा? और किसने सुना? सर्वशून्य मानने पर न वक्ता रहेगा और न श्रोता रहेगा।
____ यदि यह माने कि 'वक्ता, वचन और वचनीय पदार्थ का अभाव होने से शून्य है' तब प्रश्न होता है कि - ऐसा प्रतिपादन करने वाले वचन सत्य है या असत्य? यदि वचन को सत्य मानते है तो वचन के समान सब वस्तुओं का सद्भाव होगा, और यदि मिथ्या मानते हैं तो वह अप्रामाणिक होने से शून्यता को सिद्ध करने में असमर्थ है।
यदि सर्वशून्य है तो लोक व्यवस्था बिगड़ जायेगी। क्योंकि सामग्री का अभाव होने पर भाव-अभाव दोनों को समान मानना पड़ेगा। रज के कणों में से तैल क्यों नहीं निकलता? तिलों में तेल ही क्यों? फूलों से इत्र क्यों? आकाश-कुसुम से क्यों नहीं? इससे स्पष्ट है कि सामग्री का अभाव नहीं है।
यह भी एकान्त नियम नहीं है कि सभी पदार्थ सामग्रीजन्य है, क्योंकि द्वणुक, त्रणुकादि तो सामग्रीजन्य हैं, किन्तु अणु अप्रदेशी है, अत: यह सामग्रीजन्य नहीं है। अतःएव सर्वपदार्थ सामग्रीजन्य ही है, ऐसा नहीं मानना चाहिए। अतः सर्वशून्य नहीं है।
1 “दीसइ सामग्गीमयं, सव्वमिहत्थि ण य सा णणु विरूद्धं ।
घेप्पइ व ण पच्चक्खं, कि कच्छपरोम सामग्गी।।" विशेषावश्यकभाष्य, गाथा 1732 2 "सामग्गिओवत्ता, वयणं चऽत्थि जइ तो कओ सुण्णं।
अह णत्थि केण भणिअं, वयणाभावे सुयं केण।।" विशेषावश्यकभाष्य, गाथा 1733 3 “सिंकतासु किं ण तेल्लं, सामग्गी तो तिलेसु व किमथि।
किं व ण सव्वं सिज्झइ, सामग्गीतो खपुफाणं ।।" विशेषावश्यकभाष्य, गाथा 1736
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