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घट पहले मिट्टी के पिण्ड में उपलब्ध नहीं था, वह कुम्भकार, दण्ड, चक्रादि सामग्री के संयोग से उत्पन्न होने के पश्चात् उपलब्ध कैसे हुआ? और लकड़ी आदि से प्रहार के बाद वह घड़ा दिखाई नहीं देता। जो वस्तु सर्वथा अजात हो वह वन्ध्यापुत्र के समान सर्वदा अनुपलब्ध रहती है। '
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"उत्पन्न होते हुए भी अनुत्पन्न' यह कथन भी युक्तिपूर्ण नहीं है, ऐसी स्थिति में शून्यता ही असिद्ध हो जायेगी। एकान्तवाद का आश्रय लेने पर कुछ भी घटित नहीं होता क्योंकि "विकल्पत्रय में से किसी भी विकल्प से पदार्थ की उत्पत्ति नहीं होती" यह एकान्तवाद है, किन्तु अनेकान्तवाद से (अपेक्षा विशेष से) सब घटित होता है जैसे
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उत्पन्न ही उत्पन्न होता है, जैसे घट घट का पूर्वरूप जो मिट्टी था वह रूपादि गुण से उत्पन्न था, अतः घट उत्पन्न है ।
अनुत्पन्न उत्पन्न होता है, जैसे घट का आकार । मिट्टी के पिण्ड में घट का आकार अनुत्पन्न था तदनन्तर घटाकार रूप में उत्पन्न हुआ।
उत्पन्न अनुत्पन्न, रूप तथा आकार दोनों की अपेक्षा से घट की उत्पत्ति, जाताजात दोनों की उत्पत्ति कहलाती है ।
उत्पन्न- उत्पन्न
जैसे घट की भूत-भविष्यत् काल में क्रिया नहीं होती, क्योंकि भूतकाल नष्ट हो चुका और भविष्यत्काल अभी अनुत्पन्न है, अतः वर्तमान समय में ही उत्पन्न होता हुआ घड़ा उत्पन्न हो रहा है।
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घट
कुछ पदार्थ ऐसे हैं जिनकी उत्पत्ति इन विकल्पों से भी नहीं होती, जैसे घटरूप से उत्पन्न और पट रूप से अनुत्पन्न है । उत्पद्यमान घट भी पटरूपेण उत्पन्न नहीं होता। परपर्याय की अपेक्षा से उत्पन्न वस्तु की उत्पत्ति सर्वथा घटित नहीं होती । तथा वही घट पुनः उसी रूप में उत्पन्न नहीं हो सकता है। इसी प्रकार आकाशादि भी कभी उत्पन्न नहीं होते क्योंकि वे सदैव अवस्थित हैं ।
दूसरी बात है कि पदार्थ सामग्रीमय है, और पदार्थों के अभाव से सामग्री का भी अभाव है, अतः यह जगत् शून्य है। यह मन्तव्य सर्वथा प्रत्यक्ष विरूद्ध है । क्योंकि वचन
1 जति सव्वथा ण जातं किं जम्माणन्तरं तदुपलम्भो विशेषावश्यकभाष्य गाया 1726
2 "रुवित्ति जाति जातो, कुंभी संखणतो पुणरजातो।
जाताजातो दोहि चि तस्समयं जायभाणो त्ति ।।" विशेषावश्यकभाष्य गाया 1729
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