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उत्पत्ति घटित नहीं होने के कारण सब शून्य है
पदार्थ दो प्रकार के हैं - उत्पन्न (जात) और अनुत्पन्न (अजात)। उत्पन्न पदार्थ की उत्पत्ति नहीं हो सकती, क्योंकि वह पहले से ही जात है, तब पुनः उत्पत्ति मानने पर अनवस्था दोष होगा (जन्म-मरण चलता रहेगा), और अनुत्पन्न भी उत्पन्न नहीं हो सकते (यदि माने तो खर-विषाण की उत्पत्ति संभव है) क्योंकि असद् की उत्पत्ति नहीं होती है। उभयरूप पदार्थ भी नहीं हो सकते हैं क्योंकि प्रत्येक पक्ष में दोष आते हैं।'
माध्यमिक कारिका में बताया गया है कि – “गमन क्रिया हो चुकी हो तो जाना नहीं होता और यदि गमन क्रिया का अभाव हो तो भी जाना नहीं होता। गमन क्रिया के सद्भाव-अभाव से भिन्न रूप कोई गमन क्रिया होती ही नहीं है। अतः संसार में उत्पादादि क्रिया का अभाव है इसलिए जगत् को शून्य मानना ही ठीक है।
पदार्थ की उत्पत्ति में दो मुख्य हेतु है - उपादान तथा निमित्त। ये दोनों हेतु युगपद मिलकर पदार्थ को उत्पन्न करते हैं या एक? जैसे चाक ने घड़े को उत्पन्न किया, डोरी ने घट अलग उत्पन्न किया..... | निमित्तकारण पदार्थ को पृथक्-पृथक् उत्पन्न नहीं करते है क्योंकि ऐसा देखा नहीं गया है। यदि समुदाय से पदार्थ की सत्ता माने तो भी संभव नहीं, क्योंकि जो कार्य प्रत्येक, नहीं कर सकता वह समुदाय से कैसे हो सकता है? जैसे रेत के प्रत्येक कण में तेल का अभाव होने से समग्र कणों में भी तेल का अभाव ही होता है। इस प्रकार पदार्थ की उत्पत्ति असम्भव है।
विशेषावश्यकभाष्य में इस शंका का समाधान इस प्रकार किया गया है - ___ जात (उत्पन्न) और अजात के विषय में वस्तु की उत्पत्ति तीन विकल्पों से मानी गई है। एक ही वस्तु जात और अजात नहीं हो सकती। और जात-अजात आदि जो विचार है वे सत् पदार्थ के विषय में ही कर सकते हैं। असत् पदार्थों पर यदि विकल्प घटित करें तो आकाशकुसुम पर भी करने चाहिए। शून्यवादी का मत है कि घटादि वस्तुओं की किसी भी प्रकार से उत्पत्ति नहीं होती। किन्तु प्रश्न उत्पन्न होता है - जो
1 विशेषावश्यकभाष्य, टीका, पृ. 724 2 “गतं न गम्यते तावद, अगतं नैव गम्यते।
गतागतविनिर्मुक्तं, गम्यमानं न गम्यते।" माध्यमिक कारिका 211 3 “अणवत्था भावो भयदोसातो सुण्णता तम्हा।" विशेषावश्यकभाष्य, गाथा 1694 4 अध जातं पि ण जातं किं ण खपुप्फे वियारोऽयं। विशेषावश्यकभाष्य, गाथा 1725
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