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घटादि पदार्थ परतः सिद्ध है, क्योंकि कुम्भकार आदि कर्ता के द्वारा बनाये जाते
पुरुषादि पदार्थ माता-पिता आदि परपदार्थ तथा अपने कर्म रूप स्वपदार्थ की अपेक्षा से उभयतः सिद्ध है।
आकाशादि कुछ पदार्थ नित्य-सिद्ध हैं।' ___संसार की समस्त वस्तुएं शून्य है, उसके लिए कुछ तर्क दिये हैं – घट और घट का अस्तित्व दोनों एक है या अनेक? यदि एक माने तो विश्व के सभी पदार्थ एक हो जायेंगे। जो पदार्थ दृष्टिगत हैं वे सब घट रूप में दिखाई देंगे। ऐसी स्थिति में घट से भिन्न किसी भी पदार्थ का कागज-कलम का अस्तित्व ही नहीं रहेगा। अथवा घट सर्वात्मक होगा या अस्तित्त्वता घट में समाविष्ट हो जायेगी, अतः अस्तित्त्वता का अन्यत्र अभाव हो जायेगा।
__घट और अस्तित्त्व को एक मानने पर मात्र एक घट ही बचेगा। घट के अतिरिक्त जो भी पदार्थ है उनका अभाव हो जायेगा, सभी पदार्थ अस्तित्व से शून्य हो जायेंगे। पर ऐसा होने पर घट का अस्तित्व भी नहीं रहेगा क्योंकि घड़े का विरोधी तत्व ही नहीं तो वह किस अपेक्षा से 'घट' कहा जायेगा। अतःएव संसार में घट और अस्तित्व को अभिन्न मानने पर भी शून्य ही सिद्ध होता है।
यदि घट और अस्तित्व को पृथक भी माने तो सर्वशून्यता की ही सिद्धि होती है, जैसे - घट अस्तित्व से शून्य है तो खरविषाणवत् उसका अभाव सिद्ध होता है। इस प्रकार सभी पदार्थ अस्तित्वशून्य होने के कारण असत् कहलायेंगे और अभाव में आधार-आधेय भाव सिद्ध नहीं हो सकता।'
श्रमण भगवान महवीर ने इस शंका का समाधान इस प्रकार किया है -
अस्तित्व तथा घट के एकानेकत्व की युक्ति अयुक्त है, क्योंकि ‘घट' का अस्तित्व सिद्ध होने पर ही पर्याय विषयक विचारणा हो सकती है कि घट और उसका अस्तित्त्व धर्म - ये दोनों एक है, अथवा अनेक? इससे यह सिद्ध होता है कि घडे का अभाव नहीं
1 “ण य सो तम्हा सत्तादयोऽणवेक्खा घडादीणं।" विशेषावश्यकभाष्य, गाथा 1715 2 अत्थित्त-घड़काणेकत्ता य सव्वेकदादिदोसात्तो।
सव्वेऽणभिलप्पा वा, सुण्णा वा सत्वाधा भावा।।" विशेषावश्यकभाष्य, गाथा 1693
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