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संख्या को लेकर श्वेताम्बर सम्प्रदायों में मतभेद है, कोई 84 मानते हैं तो कोई 45 आगम मानते हैं तो कितने ही 32 मानते हैं।
स्थानकवासी और तेरापंथी परम्परा 32 आगम को प्रमाणभूत मानते हैं। मूर्तिपूजक समाज इन बत्तीस आगमों के साथ दस प्रकीर्णक, जीतकल्प, महानिर्शीथ और पिण्डनियुक्ति को मिलाकर 45 आगम मानता है, किन्तु कुछ परम्पराएं इनमें
नियुक्ति, भाष्य, चूर्णि आदि को मिलकार 84 आगम भी मानती हैं। अंगसूत्र
यह स्पष्ट तथ्य है कि श्रुत-साहित्य का अंग, उपांग, मूल और छेद के रूप में जो विभाजन हुआ है। उसका स्पष्टीकरण भी करना प्रासंगिक होगा। श्रुत पुरुष के रूप में एक महनीय और मननीय कल्पना की गई है। जैसे किसी पुरुष का शरीर बहुविध अंगों का समवाय है, उसी के सदृश श्रुत पुरुष के भी अंग-उपांग कल्पित हुए हैं। श्रुत पुरुष के दो चरण, दो जंघाट, दो उरू, दो गात्रार्ध शरीर के अग्र का भाग, शरीर का पश्चात्वर्ती भाग, दो भुजाएं, गर्दन और मस्तक, यों कुल मिलाकर द्वादश अंग होते हैं। इनमें श्रुत पुरुष के अंगों में जो प्रविष्ट हैं, सन्निविष्ट है, अंगत्वेन विद्यमान है। वे आगम श्रुत-पुरुष अंग में अभिहित है, अंग आगम हैं। इस परिभाषा के अनुसार द्वादश आगम श्रुत पुरुष के अंग ये हैं - आचारांग, सूत्रकृतांग आदि द्वादशांगी। ये वे आगम हैं, जो अर्थरूप में तीर्थंकर प्ररूपित हैं। शब्द रूप में गणधर-ग्रथित है। यों इनका स्त्रोत तत्त्वतः तीर्थंकर-सम्बद्ध है। निष्कर्ष यह है कि जिन आगमों के संदर्भ में श्रोताओं का और पाठकों का तीर्थंकर प्ररूपित के साथ गणधर ग्रथित शाब्दिक माध्यम द्वारा सम्बन्ध बनता है, वे अंग प्रविष्ट आगम हैं। उनके अतिरिक्त आगम अंग बाह्य के रूप में स्वीकृत हुए, जो अंग बाह्य आगम है, वे द्वादश है, जिनकी उपांग संज्ञा हैं, वे इस प्रकार हैं - औपपातिक, राजप्रश्नीय आदि। यद्यपि अंग बाह्य आगमों के कथ्य अंगों के अनुरूप होते हैं। अंशतः विरूद्ध नहीं होते हैं। किन्तु प्रवाह परम्परया वे तीर्थंकर भाषित के सीधे सम्बद्ध नहीं हैं।
स्थविर रचित हैं।' यथार्थता यह है कि श्रुत पुरुष के संदर्भ में कल्पना-सौष्ठव और ... सज्जा-सौष्ठव का सुन्दर-संगम परिदृष्ट होता है। स्थविर कृत अंग बाह्य आगमों में से
उत्तराध्ययनसूत्र, डा. राजेन्द्रमुनि, पृ. 13
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