SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 231
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ यद्यपि कार्यात्मक रूप से मन और शरीर अलग-अलग जान पड़ते हैं, तथापि एक ही द्रव्य के गुण के आकार होने से दोनों एक-दूसरे से सदैव मिले रहते हैं। शरीर पर बाह्य पदार्थों का प्रभाव पड़ने से निरन्तर नये रूप दिखाई देते हैं। इन सबका बोध मन को होता रहता है, अलग से कुछ नहीं जान पाता है। इससे यह सिद्ध होता है कि मन को शरीर प्रभावित नहीं करता है और न शरीर को मन। क्योंकि दोनों एक ही सत्ता के दो पहलू हैं, वह सत्ता है ईश्वर। मन जो कुछ भी कार्य करता है वह पूर्व-निश्चितकारण से ही करता है, उसकी संकल्पशक्ति स्वतंत्र नहीं है। स्पिनोजा का कहना है कि शरीर का अधिकार नहीं है कि वह मन को चिन्तन में लगा सके, तथा मन का अधिकार नहीं है कि वह शरीर की गति पर कोई नियंत्रण कर सके। स्पिनोजा के समान्तरवाद में कुछ समस्याएँ उभरती हैं, वे निम्न हैं - 1. आकस्मिक अनुभवों की व्याख्या का अभाव - कभी-कभी मानसिक क्रिया अर्थात विचारों में संलग्न रहते हैं, उसी समय किसी धमाके से चौंक पड़ते हैं तथा ध्यान टूट जाता है। यह उदाहरण मानसिक क्रिया में शारीरिक बाधा का है। यदि शरीर और मन एक-दूसरे को प्रभावित नहीं करते हैं तो आकस्मिक अनुभव कैसे होता? 2. जैविकीय विकास में मनस् की अवहेलना समानान्तरवाद के सिद्धान्त के अनुसार शारीरिक व्यवहार पर मानसिक विकास का प्रभाव नहीं पड़ना चाहिए, जबकि विकास के सिद्धान्त में मनस् के बढ़ते हुए महत्त्व पर ध्यान दिया गया है। समानान्तरवाद में मनस् का कोई महत्त्व नहीं रहता। 3. सर्वमनस्वाद ___ यदि समान्तरवाद के सिद्धान्त को मान लिया जाये तो जहाँ कहीं शारीरिक क्रिया है, वहाँ मानसिक क्रिया भी है, चाहे वह कितनी भी निम्न स्तर की हो। (क) पाश्चात्य दर्शन - डा. वात्स्यायन, पृ. 174 (ख) पाश्चात्य दर्शन का ऐतिहासिक विवेचन, डा. रामनाथ शर्मा, पृ. 226-229 (ग) पाश्चात्य दर्शन, डा. चक्रधर शर्मा, 63-67 210 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001737
Book TitleVishevashyakBhasya ke Gandharwad evam Nihnavavada ki Darshanik Samasyaye evam Samadhan Ek Anushila
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVichakshansree
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2006
Total Pages534
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy