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सामान्य भाषा से समर्थन - सामान्य भाषा में मन और शरीर दो सर्वथा भिन्न तत्त्वों के परिचायक हैं। जैसे कि पेट्रिक के अनुसार, "हम प्रेम आशा और विचार आदि के विषय में बात करते समय विस्तार या परिमाणसूचक शब्दों का प्रयोग नहीं करते, जैसे – हम यह नहीं कह सकते कि इतने वर्ग गज प्रेम, इतने सेर आशा या इतने इंच विचार हैं। हम नदी-पर्वत आदि के लिए भी इन शब्दों का इस्तेमाल नहीं करते, क्योंकि वे अचेतन हैं। अचेतन वस्तुओं के लिए विभाजन या परिमापसूचक शब्दों का प्रयोग नहीं करते जबकि चेतन के लिए करते हैं। अनुभव द्वारा समर्थन - दैनिक जीवन में भी मानसिक एंव भौतिक तत्त्वों के अलग-अलग लक्षण दिखलाई पड़ते हैं। मानसिक क्रियाएँ भौतिक क्रियाओं से भिन्न होती हैं।
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3. मनस् और पुद्गल परस्पर परिवर्तित नहीं हो सकते - अनेक दार्शनिकों व
वैज्ञानिकों ने मनस्, शरीर और मन की क्रियाओं को एक-दूसरे से समझाने की
चेष्ठाऐं की है किन्तु ये चेष्ठाएँ असफल रहीं। द्वैतवाद या अन्तक्रियावाद के विरूद्ध तर्क
परस्पर विरोधी तत्त्वों के सम्बन्ध में कठिनाई - द्वैतवाद में मनस् और पुद्गल की एक दूसरे से स्वतंत्र तथा विरोधी गुण वाला माना गया है तो ये दोनों पदार्थ जगत् की रचना में किस प्रकार सहयोग दे सकते हैं? शरीर और मन में अन्तक्रिया कैसे होती है? – देकार्ते के अनुसार शरीर और मन की अन्तक्रिया का आधार पिनीयल ग्रन्थि मानने पर भी कई प्रश्न पैदा होते हैं, (अ) यदि मनस् स्थान नहीं घेरता तो पिनीयल ग्रन्थि में कैसे सीमित किया जा
सकता है? कोई भी क्रिया उत्पन्न होने पर मन कैसे जान पाता है कि मुझे प्रत्युत्तर देना है। शरीर में कुछ क्रियाएं ऐसी होती हैं जिनका मन कोई प्रतिक्रिया नहीं करता। यदि शरीर एवं मन दोनों स्वतंत्र हैं तो एक शरीर में अनेक मन और एक मन में अनेक शरीर क्यों नहीं रह सकते हैं?
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