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________________ अनुसार स्मृति मस्तिष्क के करोड़ों सेलों (Cells) की क्रिया है। फोटो की नेगेटिव प्लेट में जिस प्रकार प्रतिबिम्ब खिंचे हुए होते हैं, उसी प्रकार मस्तिष्क में भी अतीत के चित्र प्रतिबिम्बित रहते हैं। जब उन्हें तद्नुकूल सामग्री द्वारा नयी प्रेरणा मिलती है, तब वे जागृत हो जाते हैं, निम्न स्तर से उपरिस्तर में आ जाते हैं, इसी का नाम स्मृति है। इसलिए भौतिक तत्वों को पृथक् अन्वयी आत्मा मानने की कोई आवश्यकता नहीं है। भूताद्वैतवादी वैज्ञानिकों ने भौतिक प्रयोगों के द्वारा अभौतिक सत्ता का नास्तित्व सिद्ध करने की कई चेष्ठाऐं की है, फिर भी भौतिक प्रयोगों का क्षेत्र भौतिकता तक ही सीमित रहता है। उनमें अमूर्त आत्मा का अस्तित्व नास्तित्व सिद्ध करने की क्षमता नहीं है। वैज्ञानिकों ने 102 तत्त्व माने हैं। वे सब मूर्तिमान हैं। उन्होंने जितने प्रयोग किये हैं वे सब मूर्त द्रव्यों पर किए हैं। अमूर्त तत्त्व छद्मस्थ जीवों को प्रत्यक्ष नहीं होता, अतः उस पर प्रयोग नहीं किये जाते हैं। शरीर पर किए गये प्रयोगों से आत्मा की स्थिति स्पष्ट नहीं होती। रूस के प्रसिद्ध जीवविज्ञानी पावलोफ ने एक कुत्ते का दिमाग निकाल लिया। उससे वह शून्यवत् हो गया। उसकी चेष्ठाएँ निष्क्रिय हो गई। फिर भी वह नहीं मरा । इन्जेक्शनों द्वारा उसे खाद्यतत्त्व दिया जाता रहा। इस प्रयोग पर उन्होंने यह बताया कि दिमाग ही चेतना है। उसके निकल जाने पर प्राणी में चैतन्य नहीं रहता। उन्होंने दिमाग (मस्तिष्क) को आत्मा माना। पर दिमाग अलग है आत्मा अलग है, क्योंकि बहुत प्राणी ऐसे हैं जिनमें दिमाग नहीं होता है किन्तु फिर भी जीव हैं। सामान्य रूप से चेतना का लक्षण स्वानुभव है। यह नहीं कि जो बोलता है, अंग संचालन करता है, चेष्ठाओं को व्यक्त करता है, वही आत्मा है। ये लक्षण केवल विशिष्ट शरीरधारी यानी जातिगत आत्माओं के होते हैं, वैज्ञानिकों ने अमूर्त तत्त्व की खोज मूर्त पर की, तो वह खोज सफल कैसे हो सकती थी। पाश्चात्य जगत के दार्शनिकों ने भी आत्मा और शरीर के बारे में निम्न चिन्तन प्रस्तुत किया है - 1 जैनदर्शन मनन और मीमांसा, आ. महाप्रज्ञ, पृ. 288 206 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001737
Book TitleVishevashyakBhasya ke Gandharwad evam Nihnavavada ki Darshanik Samasyaye evam Samadhan Ek Anushila
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVichakshansree
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2006
Total Pages534
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size9 MB
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