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________________ 2. यदि चैतन्य शरीर का गुण होता तब शारीरिक परिवर्तन के साथ ही साथ चैतन्य में भी परिवर्तन होता। लम्बे और मोटे शरीर में चेतना की मात्रा अधिक होती और दुबले और नाटे शरीर में चेतना की मात्रा कम होती। किन्तु ऐसा होता नहीं है, जिससे प्रमाणित होता है चेतना शरीर का गुण नहीं है। 3. चार्वाक दर्शन ने “मैं मोटा हूँ”, “मैं क्षीण हूँ” “मैं अन्धा हूँ" इत्यादि युक्तियों से शरीर और आत्मा की एकता स्थापित की है। ये युक्तियाँ आत्मा और शरीर के एकत्व को प्रमाणित करती है, परन्तु जैन दार्शनिकों के अनुसार इसका यह अर्थ नहीं है कि शरीर ही आत्मा है। चार्वाक दर्शन के इसी बात के पुष्टी विशेषावश्यकभाष्य में इस प्रकार प्रस्तुत किया गया है - जैसे मद्य द्रव्यों के समन्वय-मिश्रण मिलाने से मदिरा में मादकता उत्पन्न होती है, वैसे ही पृथ्वी, जल, अग्नि और वायु के संघात से चेतना उत्पन्न होती है, इसलिए शरीर ही जीव है। जैनदर्शन में सर्वप्रथम सूत्रकृतांगसूत्र में भी तज्जीवतच्छरीरवाद एवं पंचमहाभूतवाद का निरसन किया गया है। ये मत यह मानते हैं कि जब तक शरीर रहता है, तब तक ही आत्मा रहती है, शरीर के नष्ट होते ही आत्मा भी नष्ट हो जाती है, क्योंकि शरीररूप में परिणत पंचमहाभूतों के संयोग से जो चैतन्यशक्ति उत्पन्न होती है, वह उनके बिखरते ही नष्ट हो जाती है। शरीर से बाहर निकलती हुई आत्मा कहीं दिखाई नहीं देती, इस मत को मानने वालों के सम्बन्ध में कहा गया है कि “तमाओ ते तमं जंति मंदा आरंभणिस्सिया”। अर्थात वे आरम्भ (हिंसा) में रत अन्धकार से गहन अंधकार में जाते हैं। वे आत्मा को न मानने पर परलोक को भी नहीं मानते, तब वे शुभ-अशुभ कर्म इच्छानुसार करते हैं। वे सोचते हैं कि आत्मा-परमात्मा, पुण्य-पाप, स्वर्ग-नरक आदि कुछ नहीं है, तो पापकर्मों का बन्ध भी नहीं होगा। न ही दुर्गति मिलेगी। फलस्वरूप वे मनमाने हिंसा, झूठ, चोरी, ठगी आदि पापकर्म में रत हो जाते हैं, और ज्ञानावरणियादि कर्मसञ्चयवश वे और ' भारतीय दर्शन की रूपरेखा, पृ. 146 विशेषावश्यकभाष्य, गाथा 1650 195 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001737
Book TitleVishevashyakBhasya ke Gandharwad evam Nihnavavada ki Darshanik Samasyaye evam Samadhan Ek Anushila
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVichakshansree
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2006
Total Pages534
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size9 MB
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