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________________ छोड़ सकता है, वहीं बूढ़ापे में नहीं छोड़ सकता, इससे मेरी धारणा सही है कि आत्मा शरीर से भिन्न नहीं है।' तब केशीश्रमण ने समाधान दिया कि - एक योद्धा जो बलवान है, यदि उसके बाण कमजोर हों, धनुष जीर्ण-शीर्ण हो गया हो, तो क्या वह योद्धा एक साथ पाँच बाण छोड़ सकता है? नहीं, क्योंकि उसके पास साधन उपयुक्त नहीं है। जैसे एक निपुण एवं कुशल चित्रकार हो, यदि उसके पास रंग-रोगन आदि बाह्य सामग्री अच्छी हो तो वह अपनी कला के द्वारा विश्व को आश्चर्यान्वित कर सकता है, परन्तु बाह्य साधनों के अभाव में प्रवीण होने पर भी वह असफल रहता है। जैसे एक सुदक्ष ड्राइवर (चालक) 50 मील प्रति घण्टा की तेज चाल से मोटर को चला सकता है, परन्तु यदि उसके पूर्जे घिस गए हैं और ट्यूब या टायर पुराना हो गया हो तो वह 50 मील प्रति घण्टा की चाल से चलाने में समर्थ नहीं होगा। वैसे ही आत्मा में शक्ति अनन्त है, वह हर समय उतनी ही रहती है। परन्तु उस शक्ति को प्रकट करने का साधन, शरीर जितना मजबूत होता है, उससे वह उतना ही काम ले सकता है। परन्तु इससे उसकी शक्ति का नाश नहीं होता। इसलिए तुम्हें यह विश्वास करना चाहिए कि जीव और शरीर एक नहीं है, भिन्न है। इस प्रकार राजप्रश्नीय सूत्र में आत्मा और शरीर की भिन्नता बताई है। चार्वाक दर्शन में जो आत्मा और शरीर की अभिन्नता बतायी है, तथा चैतन्य को शरीर का गुण माना है, उनके मत का निरसन करने के लिए जैन दार्शनिक निम्न प्रमाण प्रस्तुत करते हैं - चार्वाक् दर्शन का मत है कि शरीर से ही चैतन्य की उत्पत्ति होती है। किन्तु यदि शरीर ही चैतन्य का कारण होता है तो शरीर के साथ ही साथ चैतन्य का भी अस्तित्व रहता। किन्तु ऐसी बात नहीं पायी जाती। मृत्यु के बाद शरीर तो विद्यमान रहता है परन्तु चैतन्य कहां चला जाता है? अतः शरीर को चैतन्य का कारण मानना भ्रामक है। 1. ' वही, सूत्र 252, पृ. 179 वही, सूत्र 253, पृ. 180 194 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001737
Book TitleVishevashyakBhasya ke Gandharwad evam Nihnavavada ki Darshanik Samasyaye evam Samadhan Ek Anushila
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVichakshansree
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2006
Total Pages534
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size9 MB
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