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________________ (2) जैसे किसी विद्वान ने 50 ग्रन्थ कण्ठस्थ कर रखे हैं उसमें यदि वजन किया जाये तो वजन पुस्तकों का होगा, न कि विद्या का। (3) दर्पण का वजन होता है, न कि प्रतिबिम्ब का। घट का वजन होता है, न कि घटाकाश का। वजन लोहे का है, उसमें प्रविष्ठ अग्नि का नहीं। (6) पानी में वजन है, शीतत्व का नहीं। चुम्बक का वजन है, आकर्षण शक्ति का नहीं। (8) दुर्बीन का वजन हो सकता है, नज़र का नहीं। (9) रेडियो का भार हो सकता है, आवाज़ का नहीं। इस प्रकार वजन सिर्फ शरीर का होता है, चैतन्य स्वरुप आत्मा का नहीं।' राजा पयासी ने कहा - मुनिवर! मैंने अपनी समस्या का हल करने के लिए अपराधी के बाह्य अंगों को देखा किन्तु आत्मा नहीं दिखाई दिया, तब सोचा कि संभवतः शरीर के आन्तरिक भाग में आत्मा होगा। इसलिए मैंने उसके दो टुकड़े किए और उसमें आत्मा को ढूंढने का प्रयास किया। परन्तु दिखाई नहीं देने पर तीन, चार इस तरह बारीक-बारीक टुकड़े किये, पर कोई लाभ नहीं मिला। अतः मेरी धारणा दृढ़ हो गई कि आत्मा शरीर से भिन्न नहीं है। तब केशीश्रमण ने लकड़हारे का उदाहरण देकर समझाया कि जिस प्रकार लकड़ी के टुकड़े किये जाने पर अग्नि दिखाई नहीं देती, प्रत्युत् दो लकड़ियों को परस्पर रगड़ने से आग प्रज्वलित होती है। उसी प्रकार आत्मप्रदेश जीवित शरीर के कण-कण में विद्यमान है, परन्तु रूपरहित होने के कारण दिखाई नहीं देते। अतः आत्मा और शरीर को अलग मानना ही सत्य है। __ पयासी राजा कहते हैं - मुनिवर! जैनदर्शन की मान्यता है कि जीव अनन्त ज्ञान एवं शक्ति से सम्पन्न है। यदि ऐसा हो तो उसमें हमेशा एक सा ज्ञान और शक्ति होनी चाहिए। किन्तु युवावस्था में जितनी शक्ति एवं निपुणता होती है उतनी वृद्धावस्था में दिखाई नहीं देती। एक युवक जवानी में एक साथ चार-पाँच बाण 'आत्मवाद, फूलचन्द्र श्रमण, पृ. 178 वही, सूत्र 258, पृ. 184 वही, सूत्र 259, पृ. 185-86 193 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001737
Book TitleVishevashyakBhasya ke Gandharwad evam Nihnavavada ki Darshanik Samasyaye evam Samadhan Ek Anushila
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVichakshansree
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2006
Total Pages534
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size9 MB
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