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________________ 4. राजा पयासी ने पुनः एक तर्क रखा - एक चोर को मारकर लोहे की पेटी में डलवा दिया, उस पेटी को अच्छी तरह से बन्द करा दिया। कुछ दिनों बाद ढक्कन को खोलने पर देखा कि उसमें अनेक जन्तु पैदा हो गये हैं। उस पेटी में कोई छेद नहीं था, जिसमें से जीव बाहर से उसमें प्रवेश करें, इसलिए मैं समझता हूं कि जीव और शरीर अलग नहीं हैं। तब केशीश्रमण ने कहा कि राजन् ! जैसे लोहे के ठोस गोले को आग में तपाने पर उसके एक-एक कण में अग्नि के परमाणु प्रविष्ट हो जाते हैं, जबकि उसमें एक भी छेद नहीं है, फिर भी अग्नि भीतर तक पहुंच गई, ठीक वैसे ही जीव की अप्रतिहत गति होने से वह बाह्य आवरणों को भेदकर बाहर से अन्दर प्रवेश कर जाता है । अतः तुम विश्वास करो कि जीव और शरीर अलग है। 5. जीव की गति अप्रतिहत है, वह पृथ्वी को या शिला को भेदकर बाहर निकल सकता है, इसलिए तुम मानों कि जीव और शरीर अलग-अलग हैं। ' 2 राजा पयासी कहते हैं मैंने इस तथ्य के बारे में एक और परीक्षण किया। एक अपराधी जिसको मृत्युदण्ड दिया गया था, उसके मृत्यु के पूर्व और मारने के बाद तुरन्त तोला तो उसके वजन में कोई अन्तर नहीं आया । यदि जीव शरीर से भिन्न होता तो शरीर का वजन कम होना चाहिए था, परन्तु वह कम क्यों नहीं हुआ ? 1 इस तर्क पर केशीश्रमण ने कहा - एक मशक में वायु को भर कर उसका वजन किया जाये, और वायु को निकालकर उसे पुनः तोला जाये, फिर भी उसके वजन कुछ भी अन्तर नहीं आयेगा, ठीक वैसे ही जीव का स्वभाव अगुरुलघु है, अतः मृत अवस्था या जीवितावस्था से वजन में फर्क नहीं पड़ता है। वजन तो पुद्गल का होता है, तुम्हें यह मान लेना चाहिए कि जीव अन्य है और शरीर अन्य । (1) वही, सूत्र, 249, पृ. 177 वही, सूत्र 250, पृ. 178 वही, सूत्र 251, पृ. 178 4 वही, सूत्र 256, पृ. 182 5 वही, सूत्र 257, पृ. 183 Jain Education International - वायु पौद्गलिक है, इसलिए उसमें वजन होता है, परन्तु वह इतना अल्प होता है कि उसे तराजु के द्वारा नहीं तोला जा सकता । परन्तु आत्मा पौद्गलिक नहीं है, इसलिए उसमें वजन नहीं होता । Fo192ate & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001737
Book TitleVishevashyakBhasya ke Gandharwad evam Nihnavavada ki Darshanik Samasyaye evam Samadhan Ek Anushila
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVichakshansree
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2006
Total Pages534
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size9 MB
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