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________________ जीवों को एक क्षण के लिए भी नहीं छोड़ते। अतः उनके नहीं आने मात्र से यह मानना कि जीव और शरीर एक हैं, यह मिथ्या है, वस्तुतः आत्मा शरीर से भिन्न है। राजा पयासी दूसरा तर्क रखते हैं - मेरी दादी धार्मिक आचरण करने वाली थी, और सत्कर्म के कारण निश्चित ही स्वर्ग में गयी है, उसका भी मुझसे अपूर्व स्नेह था, यदि वह आकर मुझसे कहती कि तुम धर्म-कार्य करो, जिससे स्वर्ग मिलेगा तब मैं मान लेता कि जीव और शरीर अलग-अलग हैं। केशीश्रमण ने इस तर्क का समाधान किया कि - राजन्! तुम यदि स्नान करके सुन्दर वस्त्रालंकारों से विभूषित होकर हाथ में पूजा की सामग्री लिये किसी देवालय में जा रहे हो, उस समय कोई व्यक्ति पाखाने में खड़ा होकर तुम्हें समीप बुलाकर बिठाना चाहे, तो क्या तुम बैठोगे? नहीं! उसी प्रकार तुम्हारी दादी भी चाहते हुए भी मनुष्य-लोक की दुर्गन्ध के कारण तुम्हारे पास नहीं आ सकती, और भी कई कारणों से देवता मृत्युलोक में नहीं आ सकते। अतः तुम्हें उसके नहीं आने के कारण जीव और शरीर को एक नहीं मानना चाहिए। राजा पयासी केशीश्रमण से कहते हैं कि मैंने आत्मा को देखने के लिए अनेक प्रयोग किये, परन्तु मुझे वह शरीर से भिन्न नहीं दिखाई दी। वे प्रयोग निम्न हैं - मैंने एक चोर को जीवित ही लोहे के एक बड़े घड़े में डलवाकर उसे अच्छी तरह से ढक्कन बन्द करा दिया, उपर लोहे और रांगे का पर्त भी लगवाया, कुछ दिनों पश्चात् उस घड़े को खोला तो उसमें से चोर का शव निकला, जिसमें से दुर्गन्ध आ रही थी। जबकि घड़े में एक भी छेद नहीं हुआ, जहाँ से जीव बाहर निकला हो। इससे मुझे यह विश्वास है कि जीव और शरीर भिन्न नहीं हैं। तब केशीश्रमण ने समाधान दिया कि – एक कमरा है, उसके सिर्फ एक ही द्वार है, उसमें कोई छिद्र नहीं है। उसको बन्द करके अन्दर कोई व्यक्ति नगाड़े को जोर-जोर से बजाये तो आवाज जिस प्रकार बाहर निकलती है, ठीक उसी प्रकार 3. ' वही, 245, पु. 169 ' वही, 246, पृ. 171 वही, 247, पृ. 172-173 वही सूत्र 248, पृ. 176 191 For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.001737
Book TitleVishevashyakBhasya ke Gandharwad evam Nihnavavada ki Darshanik Samasyaye evam Samadhan Ek Anushila
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVichakshansree
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2006
Total Pages534
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size9 MB
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