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रूद्रयामलतंत्र में बताया है - परम शिव के मुख से उत्पन्न एवं गिरिजा मुख से आगत ज्ञान आगम हैं।'
योग दर्शन में आगम - योग दर्शन में स्वीकृत तीन प्रमाणों में आगम तीसरे प्रमाण के रूप में स्वीकृत है।
वाचस्पतिकृत तत्त्ववैशारदी के अनुसार - तत्त्वदर्शन एवं कारूण्यादि से संवलित आप्त द्वारा दृष्टया अनुमति अर्थ भी आगम है।
सांख्यदर्शन के अनुसार - आप्त वचन को आगम कहते हैं और दोषों से जो रहित है उसको आप्त कहते हैं, क्योंकि दोष से रहित व्यक्ति सत्यपूर्ण बोलता है।' जैन परम्परा में आगम दिगम्बर एवं श्वेताम्बर साहित्य में आगम की अनेक परिभाषाएँ प्राप्त हैं - 1. आगम तीर्थंकर वाणी है - नियमसार में यह बताया है कि जो तीर्थंकर के मुख से
समुद्भुत है, वह आगम है।' 2. आगम वीतराग वचन है – राग-द्वेष रहित पुरुषों के द्वारा उद्गीर्ण वचन आगम
पंचास्तिकाय में भी कहा है – “वीतराग सर्वज्ञप्रणीत षड्द्रव्यादि सम्यक् श्रद्धान ज्ञान व्रताद्यनुष्ठानभेदरत्नत्रयस्वरूपं सत्र प्रतिपाद्यते तदागमशास्त्रं भव्यते।" वीतराग सर्वज्ञदेव के द्वारा कथित षड्द्रव्य एवं सप्ततत्त्वादि के सम्यक श्रद्धानपूर्वक ज्ञान का तथा व्रतादि के अनुष्ठान रूप चारित्र का इस प्रकार भेद विज्ञान या रत्नत्रय का स्वरूप जिसमें प्रतिपादित है, उसको आगम कहते हैं। हेय और उपादेय रूप से चार वर्गों का समाश्रयण कर तीनों कालों में विद्यमान पदार्थों का जो निरूपण करता है, वह आगम है।
'वाचस्पत्यम्, रुद्रयामालतंत्र, प्रथमखण्ड, पृ. 616 ' प्रत्यक्षानुमानागमः प्रमाणानि, योगसूत्र, 1/7
सांख्यसूत्र, 1/101 नियमसार (कुन्दकुन्दाचाय), गाथा 8 5 आगमो वीतरागवचनम्" धर्मरत्नबोध, स्वोपज्ञवृत्ति, पत्र 57 ' पंचास्तिकायतात्पर्यवृत्ति, 173-225
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