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4. मन की अस्थिरता होने पर भी वस्तु का ग्रहण नहीं होता - जैसे आँखें खुली होने
पर भी सामने रही वस्तु को न देख पाना। इन्द्रियों में कुलशता न हो - जैसे बहरा व्यक्ति सुनने में असमर्थ होता है। मति की मन्दता के कारण गम्भीर अर्थ का ज्ञान नहीं होता - जैसे अनपढ़ व्यक्ति के लिए शास्त्रों का ज्ञान असंभव होता है। अशक्यता से भी वस्तु की उपलब्धि नहीं होती, जैसे कि व्यक्ति स्वयं अपने कान, पीठ और मस्तक को नहीं देख सकते। आवरण के कारण - जैसे आँखों पर पट्टी बाँध देने पर कुछ भी नहीं देख सकते। पराभव से - जैसे सूर्य तेज से पराजित तारक व नक्षत्रगण, दिन में होते हुए भी
दिखाई नहीं देते हैं। 10. समानता से - ध्यान पूर्वक देखा गया उड़द का दाना यदि उड़द के ढेर में मिला
दिया जाये तो उस ढेर में से उसी उड़द के दाने को पहचानना सम्भव नहीं है। 11. अनुपयोग से - जिस मनुष्य का ध्यान उपयोग रूप में न हो, जैसे - नींद लेते
समय व्यक्ति को स्पर्श ज्ञान नहीं होता। उपाय के अभाव से - जैसे कोई व्यक्ति आकाश का माप जानना चाहे पर उसे मापने का कोई उपाय नहीं है। विस्मृति से भी पूर्वोपलब्ध वस्तु का ज्ञान नहीं हो सकता। मिथ्या उपदेश से - सुवर्ण के समान चमकती हुई रेत को सुवर्ण मानने पर भी
सुवर्ण की उपलब्धि नहीं होती। 15. मोह से - मिथ्यामति के कारण विद्यमान जीवादि तत्वों का ज्ञान नहीं होता। 16. दर्शन शक्ति के अभाव के कारण - जैसे जन्मान्ध को कुछ नहीं दिखाई देता।
विकार के कारण - वृद्धावस्थाजन्य विकार से वस्तु का ज्ञान नहीं होना। 18. क्रिया के अभाव से - जमीन खोदने की क्रिया न करने पर वृक्ष का मूल दिखाई
नहीं देता। 19. अनाधिगम से - शास्त्रों को नहीं सुनने से उनके अर्थ का ज्ञान नहीं होता। 20. काल की दीर्घता से - जैसे दीर्घकाल व्यतीत हो जाने से ऋषभदेव आदि प्राचीन
व्यक्तियों का सम्पूर्ण जीवन जान नहीं पाते। 21. स्वभावविप्रकर्ष से - अमूर्त होने के कारण आकाशादि नहीं दिखाई देते।
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