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अनुभूत वस्तु का स्मरण यज्ञदत्त को नहीं होता। जबकि पूर्वभव का स्मरण तो होता है। शरीर के नष्ट हो जाने पर भी विज्ञान सन्तति का नाश नहीं होता । अतः यह सिद्ध होता है कि विज्ञान सन्तति शरीर से भिन्न है, तथा वह क्षणिक भी नहीं है क्योंकि हम पूर्वोपलब्ध वस्तु का स्मरण होता है।' बौद्ध मत में ज्ञान को क्षणिक मानते हैं, उनके अनुसार इस संसार में जो सत् है वह सब क्षणिक है तथा एक ज्ञान एक ही विषय को ग्रहण करता है। उनका यह कथन सत्य नहीं है, क्योंकि जब सब पदार्थ सामने उपस्थित हों, तब ही यह ज्ञान उत्पन्न होता है कि 'ये सब पदार्थ क्षणिक हैं'। जबकि उनके मतानुसार एक ज्ञान एक ही पदार्थ को ग्रहण करता है, अतः एक ज्ञान से सब पदार्थों की क्षणिकता का ज्ञान नहीं हो सकता। इसलिए विज्ञान क्षणिक नहीं है। ज्ञान गुण अतः कोई न कोई आधार आवश्यक । फलस्वरूप शरीर से भिन्न गुणी आत्मा का मानना आवश्यक है।
आत्मा का
आत्मा और शरीर को भिन्न सिद्ध करने पर एक शंका होती है कि शरीर में प्रवेश करना और निकलना दिखाई क्यों नहीं देता है? जैसे कोई पक्षी घड़े के भीतर प्रवेश करते व निकलते हुए दिखाई देता है, वैसे ही आत्मा क्यों नहीं दिखाई देती
है?
इसका समाधान इस प्रकार किया गया है किसी भी वस्तु की अनुपलब्धि दो प्रकार की होती है, एक तो अविद्यमान पदार्थ सम्बन्धी, अर्थात् जो वस्तु सर्वथा असत् हो, वह कभी भी उपलब्ध नहीं होती। जैसे खरविषाण ( गधे के सींग ) । तथा प्रकार वह है जो वस्तु सत् अथवा विद्यमान है किन्तु कुछ कारणों से अनुपलब्ध होती है, जैसे
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बहुत दूर होने से
अति समीप होने से
अतिसूक्ष्म होने से
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जैसे स्वर्ग-नरकादि ।
जैसे नैत्र और अंजन ।
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जैसे
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णय सव्वधेव खणियं णाणं, पुव्वोवलद्धसरणातो ।
खणिओ ण सरति भूतं, जधं जम्माणंतरविणहो ।। गाथा 1673
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यत् सत् तत् सर्व क्षणिक हेतुबिन्दु, पृ. 44
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क्षणिकाः सर्व संस्काराः
जस्सेगमेगबंधणमेगंतेण खणियं च विण्णाणं ।
सव्वखणिय विण्णाणं, तस्साजुत्तं कदाचिद वि ।। गाया 1674
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परमाणु (पुद्गल का सबसे सूक्ष्मतम भाग)
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