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समाधान - भूत समुदाय में चैतन्य प्रकट नहीं होता। यह कथन प्रत्यक्ष प्रमाण से युक्त है, क्योंकि प्रत्यक्ष का बाधक आत्मसाधक अनुमान विद्यमान है। जैसे - पानी तथा भूमि के समुदाय मात्र से हरी घास घास की उत्पत्ति देख कर कोई यह कहे कि यह केवल पानी और पृथ्वी के समुदाय से होती है, तब उसका यह प्रत्यक्ष बीज साधक अनुमान से बाधित होता है।' वैसे ही चैतन्य को मात्र भूतों का धर्म प्रतिपादन करने वाला प्रत्यक्ष भी भूतों से सर्वथा भिन्न आत्म को सिद्ध करने वाले अनुमान से बाधित हो जाता है। अतः प्रत्यक्ष प्रमाण से आत्मा और शरीर की भिन्नता सिद्ध है। अनुमान प्रमाण द्वारा भूत भिन्न आत्मा की सिद्धि 1. भूतों या इन्द्रियों से भिन्न ऐसा कोई पदार्थ है, जिसे इन्द्रियों द्वारा उपलब्ध पदार्थ
बोध का स्मरण होता है। जैसे कि पाँच गवाक्षों से देखकर उपलब्ध वस्तु का स्मरण करने वाला व्यक्ति उससे भिन्न है। पाँच गवाक्षों से एक के बाद एक के क्रम से देखने वाला व्यक्ति तो एक ही है, किन्तु गवाक्षों से वह भिन्न है, क्योंकि वह पाँचों गवाक्षों से देखी गई वस्तु का स्मरण करता है। वह स्मरण करने वाला इन्द्रियों से भिन्न है, वही आत्मा है।
इन्द्रिय व्यापार से उपरत होने पर अथवा इन्द्रियों के नाश होने पर भी इन्द्रियों द्वारा उपलब्ध वस्तु का स्मरण रहता है। कभी-कभी इन्द्रियों के व्यापार होने पर भी अन्यमनस्कता के कारण वस्तु की उपलब्धि नहीं होती है। अतः यह सिद्ध होता है कि पदार्थों का ज्ञान इन्द्रियों से नहीं होता, किन्तु उससे भिन्न किसी दूसरे तत्त्व को होता है। यह स्पष्ट है कि इन्द्रियों से भिन्न आत्मा उपलब्धिकर्ता है, इन्द्रियाँ उसकी उपकरण (सहायक) है। इन्द्रियों से आत्मा भिन्न है - क्योंकि वह एक इन्द्रिय से उपलब्ध वस्तु को दूसरी इन्द्रिय से ग्रहण करती है। जैसे - हमने आँख द्वारा वस्त्र को देखा, किन्तु स्पर्श हाथ के द्वारा ही किया जा सकता है। जैसे कोई वस्तु हमने पहले गवाक्ष से देखी, वही वस्तु दूसरे गवाक्ष से लेते हैं, जबकि लेने वाला गवाक्षों से अलग है।
णाणु जच्चक्खविरोधो गोयम! तं णाणुमाणभावातो। तुह पच्चक्खविरोधो, पत्तेयं भूतचेतं ति।। गाथा 1656 विशेषावश्यकभाष्य भूतिदियोवलदाणुसरत्तो, तेहि भिण्णरुवस्स। चेता पंचगवक्खोवलध्दपुरिसस्स वा सरतो।। गाथा 1657
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