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________________ यदि प्रत्येक अवयव में मदशक्ति न माने तो इन सामग्रियों का ही उपयोग क्यों किया जाता है? इनके बदले ईंट-पत्थर आदि का उपयोग भी कर सकते हैं। इससे यह स्पष्ट है कि जो गुण प्रत्येक अंश में है, वही गुण समुदाय में प्रकट हो सकता है। प्रत्येक भूत में चैतन्यशक्ति मानने पर भूतों के समुदाय से चैतन्य उत्पन्न होता है, यह आग्रह होने पर एक प्रश्न पैदा होता है कि - मृत शरीर में पृथिव्यादि भूतों का संघात पूर्ववत् विद्यमान है फिर भी वहाँ चैतन्य दिखाई नहीं देता है। यदि यह कहें कि मृत शरीर में वायु नहीं है इसलिए चैतन्य का अभाव है, किन्तु मृत शरीर में नली द्वारा वायु पहुंचाई जाये तो भी चैतन्य की उत्पत्ति नहीं होती है, और अग्नि का अभाव मानने पर भी अग्नि के संयोग से चैतन्य का उद्भव नहीं होता। और यदि यह माने कि विशिष्ट प्रकार की वायु और अग्नि का अभाव है, अतः चैतन्य की प्राप्ति नहीं होती तो यह वैशिष्ट्य कोई दूसरा नहीं है वह आत्मा ही है। इस प्रकार चैतन्य को भूत से उत्पन्न नहीं मान सकते हैं। पंचभूतों के समुदाय मात्र से चैतन्य गुण उत्पन्न हो जाता है, यह बात प्रत्यक्ष अनुभव की कसौटी पर खरी नहीं उतरती। जैसे – एक कारीगर ने मिट्टी की एक पुतली बनाई। उसमें मिट्टी, पानी, हवा, धूप (तेज) अग्नि एवं आकाश इन पाँचों भूतों को वहाँ एकत्र किया गया। इस प्रकार पृथ्वी आदि पाँचों भूतों को मिलाकर एक स्थान पर रख देने पर भी वहाँ चेतना दिखाई नहीं देती। जबकि मिट्टी की पुतली में पाँचों भूत मौजूद है, फिर भी उसमें चेतना नहीं आती, वह जड़ ही बनी रहती है। इस प्रकार यह स्पष्ट है कि भूतों से चैतन्य गुण उत्पन्न नहीं होता। प्रत्यक्ष प्रमाण से आत्मा और शरीर की भिन्नता सिद्ध शंका - भूत समुदाय में चैतन्य साक्षात दिखाई देने पर भी यह मानें कि वह भूत समुदाय का धर्म नहीं है, तो यह कथन प्रत्यक्ष विरोधी होगा। जैसे घड़े में रूपादि गुणों के प्रत्यक्ष होने पर भी कोई यह नहीं माने कि रूपादि गुण घड़े के हैं। (क) भूताणं पत्तेयं पि चेतणा, समुदये दरिसणात्तो। जध मज्जंगेसु मदो मति त्ति हेतु ण सिद्धोऽयं ।। गाथा 1655 विशेषावश्यकभाष्य (ख) विशिष्ट तेजोऽनिलयोरभावत्, मृते शरीर न हि चेतन चेत्। तद्त्वं विशिष्ट ननु जीवमेव कथं न वेत्सिद्विज! देहभिन्नम् ।। महावीर देशना, श्लोक 11, पृ. 141 180 For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.001737
Book TitleVishevashyakBhasya ke Gandharwad evam Nihnavavada ki Darshanik Samasyaye evam Samadhan Ek Anushila
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVichakshansree
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2006
Total Pages534
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size9 MB
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