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________________ है। महात्मा बुद्ध ने कर्म को परिभाषित करते हुए कहा कि-"चेतना ही भिक्षुओं का कर्म है, व्यक्ति चेतना के द्वारा ही मन-वचन-काया से कर्म करता है। कर्म के सभी पक्षों का सापेक्ष महत्व स्वीकार किया है। आश्रय की दृष्टि से कायाकर्म प्रधान है, क्योंकि मनकर्म और वाचाकर्म काया पर आधारित है। स्वभाव की दृष्टि से वाक्कर्म प्रधान है, क्योंकि काया और मन स्वभावतः कर्म नहीं है। समुत्थान की दृष्टि से मनकर्म प्रधान है, क्योंकि सभी कर्मों का प्रारम्भ मन से है। इसलिए चेतना को कर्म बताया है। कर्मों का द्विविध वर्गीकरण किया है-- 1. चेतनाकर्म, 2. चेतयित्वा कर्म। चेतना मानसकर्म है और चेतना से उत्पन्न वचन और कायिक कर्म 'चेतयित्वा' है।' विज्ञानवादी बौद्ध कर्म को 'वासना' कहते है। प्रज्ञाकर का अभिमत है कि-जितने भी कार्य है वे सभी वासनाजन्य है। ईश्वर हो या कर्म, प्रकृति हो या अन्य, इन सभी का मूल वासना है। राजा मिलिन्द ने आचार्य नागसेन से पूछा कि-जीव द्वारा किये गये कर्मों की स्थिति कहां है? आचार्य ने उत्तर दिया कि यह दिखलाया नहीं जा सकता कि-कर्म कहां रहते है?" अर्थात् कर्म का अस्तित्व सिद्ध है किन्तु स्थान ज्ञात नहीं है। विसुद्धिमग्ग में कर्म को अरूपी कहा गया है। अभिधर्मकोष में वह अविज्ञप्ति रूप है। शून्यवादी मत में माया अथवा अनादि अविद्या का ही दूसरा नाम वासना है। वेदान्त मत में विश्व-वैचित्र्य का कारण अविद्या अथवा माया है। इस प्रकार बौद्ध दर्शन में तीन प्रकार के कर्म माने हैं- 1. अकृष्ण (अशुक्ल) कर्म 2. कुशल कर्म 3. अकुशल (कृष्ण) कर्म। अभिधर्मकोष और विशुद्धिमग्ग में कृत्य की दृष्टि से चार, पाकदान की दृष्टि से चार और पाककाल की दृष्टि से चार इस प्रकार 12 प्रकार के कर्म का वर्णन है।' अंगुत्तरनिकाय-उद्धृत-जैन-बौद्ध और गीता के आचारदर्शनों का तुलनात्मक अध्ययन, डॉ. सागरमल जैन, वही, पृ. 304 - बौद्ध धर्म-दर्शन, पृ. 249 ३ मिलिन्द प्रश्न-3-15, पृ. 75 * गणधरवाद, प्रस्तावना, पृ. 134-135 Jain Education International For Privat 167sonal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001737
Book TitleVishevashyakBhasya ke Gandharwad evam Nihnavavada ki Darshanik Samasyaye evam Samadhan Ek Anushila
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVichakshansree
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2006
Total Pages534
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size9 MB
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